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कर्मविपाकनामे कर्मग्रंथ. १ होय तेज जवमा जोगवाय बे. एटले मनुष्य नव वेदता थका जो देवतानुं श्रायुष्य बांध्यु होय तो कांश मनुष्यनवमां वेदाय नही, किंतु अवश्य जन्मांतरेज वेदाय. श्रायुष्यना उदयनी विवदा विशिष्ट थकी कही . पण प्रदेश थकी नयी कही. ते विशिष्टपणुं तो ते श्रायुष्यना सनाव वर्त्तन थकी होय , अथवा जेनो उदय थयाथी तनवयोग्य यावत् शेष कर्म उपनोगपणे श्रावी प्राप्त थाय तेने श्रायु कही. तथा जे जीवप्रत्ये गति जाति प्रमुख पर्यायना अनुजवने करे तेने नाम कर्म कहीये. तथा जेणे करी थात्माने उंचनीच शब्दे करी बोलवाय ने तेने गोत्रकर्म कहीयें. तथा जेणे करी दानादिक लब्धिठनो नाश थाय ने, अथवा जे उक्त लब्धिऊनो विशेषे करी नाश करे ने तेने अंतराय कर्म कहीये.
तेमां ज्ञानावरणीय, पण के पांच प्रकारचें बे, दर्शनावरणीय नव के नव प्रकारचें बे, वेदनीय छ के बे प्रकारचं बे, मोहनीय अमवीस के अहावीस प्रकारचें , श्रायु चट के चार प्रकारनुं बे, नामकर्म तिसय के एकसो ने त्रण प्रकारनुं ; गोत्र छ के बे प्रकारनुं बे, श्रने अंतराय कर्म पण विहं के पांच प्रकारचें . एवी रीते मूल पाठ प्रकृतिनी उत्तर एकसो ने श्रावन प्रकृति थाय बे.
आशंका-एवा अनुक्रमथी ज्ञानावरणादि कर्मोनो उपन्यास कस्यानुं का प्रयोजन डे के खानाविक एवो अनुक्रम श्रावी गयो ?
उत्तर- अनुक्रम करवानुं प्रयोजन , ते था प्रमाणेः- अहीं ज्ञान तथा दर्शन ए जीवनुं स्वतत्व नूत डे; केम के, ए विना जीवत्व कहेवाय नही. जीव चेतना लक्षणवंत बे. ते चेतना लक्षण ज्ञान तथा दर्शनना अनावे केम संनवे, तथा ज्ञान अने दर्शनमाहे पण ज्ञान प्रधान बे. जे झाने करी सकल शास्त्रार्थ विचारनी संतति प्रवर्त बे. ते माटे अथवा सर्व लब्धि साकारोपयोगे उपयुक्त जीवने उपजे . पण निराकारोपयोगे एटले दर्शनोपयोगे उपयुक्त जीवने न उपजे. यतः "सबा लडीसागारोव गोवउत्तस्स नो अणागारोव उगोवउत्तस्स” इति वचनप्रामाण्यात् माटे ज्ञान प्रधान . अथवा जे समयें सकल कर्म विनिर्मुक्त जीव थाय बे, ते समयें जीव ज्ञानोपयोगोपयुक्त होय बे, श्रने दर्शनोपयोग तो द्वितीय समयमां थाय , तेमाटे झान प्रधान बे, तेनुं जे श्राबादन करनारं ते ज्ञानावरणीय कर्म बे, तेने सर्व कर्म बे, तेने सर्व कर्ममा प्रथम गण्यं बे; अने ज्ञानोपयोगथी पतित जीवने दर्शनोपयोगने विषे श्रवस्थान बे, तेमाटे ते ज्ञानानंतर द्वितीयस्थाने दर्शनावरण कर्म गण्युं बे. ___ए ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्म पोताना विपाकने उदय करता थका यथायोग्य अवश्य करी वेदनीय कर्मविपाकना उदयतुं निमित्तजूत थाय डे, ते देखाडे
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