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________________ JIG लघुदेवसमासप्रकरण. याकवीसा ॥ चग्यालसयसहस्सा ॥ विकंजो कुंडलोदीवो ॥ १॥ दसकोमीसहस्साइं॥ चत्तारिसया पंचसीयाई ॥ बावत्तरिंचलका ॥ विख्नोख्यगदीवस्स ॥२॥ एम बीपपन्नतिनी नियुक्तिमांहे कुंमलदीप श्रने रुचकछीपनुं विष्कंन कडं ने, ते लाख योजन प्रमाण जंबूझीप थकी, बमणा द्वीपसमुख गणतां गाथोक्त बे हजार बसें ने एकवीश कोमी चुमालीश लाख योजन एटलुं दशमा कुंडलछीपनुं मान श्रावे. बीजी गाथाए रुचक छीपर्नु परिमाण दश हजार चारसे ने पंचासी कोमी ने बहोतेर लाख योजन कह्या बे ते श्रगीधारमा छीप, मान श्रावे . एटले ए एक विकल्पः॥ तथा- जंबुधायईपुरकर ॥ वारुणीखीरघयखोयनंदीसरा ॥ थरुणरूणवायकुंडल ॥ संखस्यगन्जुयगकुसकुचा ॥१॥ ए संघयणीनी गाथाने अनुसारे अगीधारमो कुंमलजीप थने तेरमो रुचकहीप. ए बीजो विकल्पः॥ तथा तिपडोयारातहारुणाश्या ए रीते जोतां एक नामे त्रण नाम करतां पन्नरमो कुंमलदीप श्रावे बे, अने एकवीशमो रुचकहीप थावे जे, ते एवी रीते के-श्राग्मो नंदीश्वर बीप बे, त्यारपती नवमो अरुण, दशमोथरुणवर, श्रगीश्रारमो अरुणवरावनास, बारमो अरुणोपपात, तेरमो अरुणोपपातवर, चउदमो अरुणोपपातवरावनास, पनरमो कुंमल, सोलमो कुंमलवर, सत्तरमोकुंमलवरावनास, अढारमो संख,उंगणीशमो संखवर, वीशमो संखवरावनास, एकवीशमो रुचक, ए रीते एकवीशमो रुचकछीप श्रावे . ए त्रीजो विकल्प जाणवो. जीवानिगमने विषे पेहेला विकल्पनी संख्या कही बे. यथा ॥ जंबूदीवेलवणे ॥ धायश्कालोयपुरकरेवरुणे ॥ खीरवयखोयनंदी ॥ अरुणवरे कुंमले रुयगे ॥ ए चोथो विकल्प ॥ एम चार विकल्प बे. तथा ते रुचकछीपना बहुमध्यदेशनेविषे वलयने श्राकारे रुचकशैल बे. ते चोराशी हजार योजन ऊंचो , वली नरनगसम के मानुष्योत्तर पर्वत सरखो विस्तार . पुण के वली एटलुं विशेष जे ए विस्तारना शत आंकने स्थानके सहस्रनो श्रांक जाणवो. जेम मानुष्योत्तर पर्वतनो मूल विस्तार एक हजार ने बावीश योजन . तो रुचक पर्वतनो मूल विस्तार दश हजार ने बावीश योजन जाणवो. वली मानुष्योत्तर पर्वतनो शिखर विस्तार चारसे ने चोवीश योजन , तो रुचक पर्वतनो शिखर विस्तार चार हजार ने चोवीश योजन . ॥ २५ ॥ तस्स सिहरंमि चनदिसि ॥ बीयसदस्सिगिगु चनबि अहह ॥ विदिसि चक श्य चत्ता॥ दिसि कुमरिकूड सहस्सुच्चा ॥२६॥ अर्थ-तस्स के ते रुचकशैलना सिहरंमि के शिखरनेविषे चउदिसि के पूर्वादिक चार दिशाने विषे बीयसस्सिगिगु के बे हजार योजन ज्यां थाय डे, त्यां ए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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