SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघुदेवसमासप्रकरण. २७ क्षेत्रना खलावनुं विशेष जाणवु ॥ इति श्री सहेजरत्न विरचित्ते क्षेत्रसमासवार्तिके पं. चमोधिकारः ॥ २५६ ॥ . ॥ हवे पुष्कराई पर्वत प्रमुखने विषे जिनजवन ते कहे .॥ चसु वि इसुयोरसु ॥ इकिकं नरनगंमि चत्तारि ॥ कूडोवरि जिणनवणा ॥ कुलगिरिजिणनवणपरिमाणा ॥ २५ ॥ अर्थ-प्रथम कह्यां जे धातकीखंडने विषे बे इषुकार, श्रने बे खुकार पुष्करा:नेविषे ए चउसुवि के चारे पण सुयारेसु के० खुकार पर्वतने विषे प्रत्येके चार कूट , तेमांहे बेला सिद्धकूटने विषे चार पर्वते कि के० एकेक जिननवन , बधा मली चार जिनजवन डे, अने नरनग के मानुष्योत्तर पर्वतना चतारिकुमोवरि के चार कूटना उपर जिणजवणा के चार जिनजवन , ते जिननवन केहवां ? तो के-कुल गिरिजिण जवणपरिमाणा के कुलगिरिना जिननवनने परिमाणे ते जिनजवन जाणवा. एटले पचाश योजन लांबां, पचीश योजन पहोला अने त्रीश योजन उंचां एवां जिनजवन जाणवां. ॥ २५॥ ॥ हवे नंदीश्वर, कुंडल अने रुचक छीपनेविषे जिननवन कहे . ॥ तत्तो गुण पमाणा ॥ चनदारा थुत्तवलियसुरूवा ॥ नंदि सर बावमा ॥ चन कुंडलि रुयगिचत्तारि ॥ २५ ॥ अर्थ- तत्तो के ते मानुष्योत्तर तथा षुकार पर्वतना जिननवन थकी उगुणपमाणा के बमणुं प्रमाण जेमनु, अर्थात् एकसो योजन लांबां अने पचाश योजन पहोला तथा बहोत्तेर योजन ऊंचां एवां अने चउदारा के चार बारणे सहित थुत्तवणियसुरूवा के पूर्वसूरिकृत स्तोत्रने विषे वखाएयु के स्वरूप जेमर्नु एवा, श्रापमा नंदीश्वर बीपनेविषे बावन्न जिननवन जाणवां, तथा कुंडल छीपनेविषे कुंमलने श्राकारे जे मध्य गिरि ने तेने कुंडलगिरि कहे , तेनी चार दिशाने विषे एवाज प्रकारनां चार जिननवन जाणवां. एम रुयगिचत्तारि के रूचकहीपने विषे पण चार जिननवन डे, एम साठ जिननवन ते चार बारणांनां बे. बहुसंखविगप्पे रुय, गदीव उच्चत्ति सहस चुलसीई ॥ नर नगसमरुयगो पुण ॥ विबरि सयगणसदसको ॥२५॥ अर्थ- बहुसंख के० घणी संख्याना विगप्पे के विकल्प एटले विचार जे जेने विषे, एवो रुचक छीप ते विकल्प देखाडे . यथा ॥ दोकोडीसहस्साशं ॥ बच्चेवस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy