SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७३ लघुदेवसमासप्रकरण. हं के० ए पुष्करवर छीपनेविषे पण जाणवा. उगुणोयनदसालो के० धातकीखंगना नशाल वन थकी पुष्कराईनुं नमशाल वन ते लांबपणे अने पहोलपणे बमणुं जाणवं. तो मेरुनी पूर्व पश्चिम दिशाए जमशालवनना धातकीखंमनेविषे विस्तार एक लाख सात हजार आठसे ने उंगणाएंसी योजन बे. तेने बमणां करीएं तेवारे बे लाख पन्नर हजार सातसें ने बहावन योजन थाय. ने एने जेवारे श्रव्यासी नागे वेहेंचीएं, तेवारे बे हजार चारसें एकावन योजन उपर एक योजनना अट्यासी नाग करिएं, तेवा सोतेर नाग एटलो दक्षिण उत्तर दिशाना जशाल वननो विस्तार पुष्कराईनेविषे जाणवो. मेरुसुयारा के पुष्कराना बे मेरु अने खुकारा पर्वत तेनो विस्तार तहाचेव के ते धातकी खंग सरखो जाणवो. ॥ २४३ ॥ ॥हवे बाहेरना चार गजदंता वखाणे . ॥ इद बाहिरगयदंता॥ चनरो दीदत्ति वीससय सहसा॥ तेयालीससहस्सा ॥ गुणवीसहिया सया उन्नि ॥४४॥ अर्थ- इह के ए पुष्कराऊने विषे मानुषोत्तर पर्वतनी दिशाए वाहिरगयदंताचजरो के बाहेरना चार गजदंतगिरि ते वीससयसहस्सा के वीश लाख तेतालीश हजार बसें ने उंगणीश योजन दीहत्ति के दीर्घ इति एटले लांबा . ॥ २४ ॥ अजिंतरं गयदंता ॥ सोलसलरका य सहस ब्बीसा ॥ सोलदिय सयंचेगं ॥ दीदत्ते हुँति चनरोवि ॥४५॥ . अर्थ- कालोद समुनी जगतीनी दिशाना अप्रिंतर के मांहेला चारे गजदंतगिरिजे, ते सोल लाख बबीश हजार एकसो ने सोल योजन एटला दीर्घ एटले लांबा, हुंति के जे. तथा चार लाख बत्रीश हजार नवसे ने सोल योजन एटली कुरुक्षेत्रनी जीवा होय, वली सत्तर लाख सात हजार सातसें ने चनद उपर एक योजनना बसें बार नाग करिएं, तेवा आठ नाग एटलो कुरुक्षेत्रनो विस्तार जाणवो. त्रणसें तेत्रीस योजन उपर एक योजननो त्रीजो नाग एटलुं कंचनगिरिनुं मांहोमांहे अंतर जाणवू. बे लाख चालीश हजार नवसें ने जंगणसाठ योजन उपर साती एक नाग एटडं अंतर कुल गिरि, जमक अने अहनुं अंतर जाणवू, तथा उत्रीश लाख जंगणोतेर हजार त्रणसे ने पत्रिीश योजन एटर्बु कुरुदेत्रनुं धनुपृष्ट जाणवू. ॥२५॥ हवे शेष, नदी तथा पर्वतनां परिमाण कहे . ॥ सेसा पमाण जद ॥ जंबूदीवाज धाइए जणिया । उगुणासमा यते तद॥धायईसंडाउ इह नेया॥श्४६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy