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________________ लघुदेव समासप्रकरण. २०१ सूर्यना द्वीप ते नायवा के० जाणवा. ते यावीरीते के:- धातकी खंगनी जगतीथकी वार हजार योजन कालोद समुद्रमांहे पूर्व दिशाने विषे धातकीखंगना बार चंद्रमाना बार द्वीप बे ने पश्चिम दिशाने विषे बार सूर्यना बार द्वीप बे, तथा कालोदनी जगती थकी कालोद समुद्रमांदे बार हजार योजने पूर्व दिशाने विषे कालोदधिना वेतालीश चंद्र माना बेतालीश द्वीप बे, छाने पश्चिम दिशाए बेतालीश सूर्यना बेतालीश द्वीप ठे. नवरं के० एटलुं विशेष जे समंतर ते के० ते सर्व द्वीप बाहेरनी दिशाए सर्वत्र जोतां जलस्सुवारें के० पाणी थकी उपरे कोसडुगुच्चा के० बे कोश उंचा बे; तथा एकाएं लाख सित्तोत्तर हजार बसें ने पांच योजन कालोद समुद्रनो परिधि जावो. अने बावीश लाख बाणु हजार बसें ने बेतालीश योजनाने उपर त्रण कोश एटलुं जगतीद्वारांतर जाणवुं ॥ २४९ ॥ इति श्रीक्षेत्रसमास वार्तिके कालोदाधिकारश्चतुर्थः समाप्तः ॥ ॥ दवे पांचमो पुष्करदल द्वीपनो अधिकार कहे बे. 11 पुस्करदलब हिजगाइ ॥ वसंवि माणुसुत्तरो सेलो ॥ वेखंधरगिरिमाणो ॥ सींह निसाई निसढवासो ॥ २४२ ॥ अर्थ- कालोद समुनी जगती थी बाहेर वलयने श्राकारे सोल लाख योजन पहोली पुष्कर द्वीप बे, ते पुरकर के० पुष्कर द्वीपनुं दल के० अर्द्ध आठ लाख योजन बे, त्यां की बाहेरनी दिशाए जगश्व के० जगतीनी पेरे वलय सरखो माणुसुत्तरोसेलो के० मानुष्योत्तर एवे नामे पर्वत ते संवि के० रह्यो बे, पण ते केवो बे? तो के - वेलंधर गिरिमाणो के० वेलंधर गिरिने माने वे एटले मूलने विषे एक हजार बावीश योजन ने शिखरने विषे चारसें ने चोवीश योजन पहोलो बे, ने सत्तरसें एकवीश योजन उंचो . वली सींह निसार के० सिंहनी पेरे निसादी बे, जेम सिंह बेशे तेवारे श्रागल उंचो होय, अने पाठले जागे नीचो होए तेम मानुष्योत्तर पण मांहेनी दि शाएं उंचोबे, छाने बाहेरनी दिशाएं नीचो ढाल मांहे बे. वली केहवो बे? तो केrecard के० निषेध पर्वतने वर्षे राता सुवर्णनो बे ॥ २४२ ॥ Jain Education International ॥ हवे त्यां क्षेत्र ने पर्वतनां स्वरूप वखाणे बे. ॥ जद खित्तनगाईं ॥ संगणो धायए तदेव इदं ॥ डुगुगोय नसाली ॥ मेरु सुयारा तहा चेव ॥ २४३ ॥ अर्थ- जह. के ० जैम खित्त के० क्षेत्र ते जरतादिक ने नगाई के० पर्वत हैमवंत प्रमुख तेनां संठाणो के० संस्थान जे आकार विशेष ते धायए के० धातकी खंगनेविषे कांबे. एटले त्यां जेम चक्रना थारा ने विवर सरखा बे, तदेव के० तेमज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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