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________________ २०० लघुदेवसमासप्रकरण. धाइ महधाई के धातकी ने महाधातकी एवे नामे बे रुरका के वृद , तेसु के ते बे वृदने विषे सुदंसण पियदसण नामया देवा के सुदर्शन अने प्रियदर्शन एवे नामे बे देवता अनुक्रमे वसे बे, अने बे देवकुरुक्षेत्रने विषे तो जंबूहीपनी पेरे गरुल देवताने वसवायोग्य बे साल्मली वृद . ॥ २३ ॥ ॥ हवे धातकी खंमना त्रण परिधि कहे जे. ॥ . धुवरासीसु य मिलिया॥ एगो लस्को य अडसयरि सहसा ॥ अहसया बायाला ॥परिहितिगं धायईसंमे ॥१३॥ अर्थ- प्रथम कही जे ध्रुवांकनी त्रण राशी तेनी साथे एक लाख अहोत्तेर हजार आठसे ने बेतालीस एटला योजन मिलिया के मेलवीएं, तेवारे अनुक्रमे परिहितिगंधायसंडे के० धातकी खंडना त्रणे परिधिनु परिमाण थाय, ते यंत्रथी समजवु. हवे ए ध्रुवांक केवी रीते नीपजे, तेनो विधि ग्रंथातरथी कहे . यमुक्तं ॥ इहवासहराजंबु ॥ सेलगुण विचराचसुधारा ॥ रिकत्तंफुसं तिलको ॥ अमसय रिसहसबियाला ॥१॥ तणूणलवणपरिहि ॥ धायसंमस्सश्राइधुवरासी ॥ गिरिपिछणा तम्मऊ ॥ परिहीसमऊधुवरासी ॥२॥ अंतस्स विजापरिही ॥ गिरिविचररहियअंतधुवरासी ॥ गिरिविछरेण मिलियं ॥ परिहिंतिगणुकमेणजवे ॥ ३ ॥ २३॥ ॥ इति श्रीसहेजरत्नविरचित्ते क्षेत्रसमास वार्तिके धातकीखंमाधिकारे तृतियः परिछेदः॥ ॥हवे कालोद समुनो चोथो अधिकार कहे .॥ कालोददि सबनवि ॥ सहसुंडो वेलविरदिउँ तब ॥ सु वि यसम कालमहा ॥ कालसुरा पुवपछिम ॥ २४०॥ अर्थ- कालोदधि नामे जे समुद्र ते धातकीखेमनी जगती बाहेर वलयने आकारे बे. ते केवो ? सबनवि के सर्वत्र सहसंमो के हजार योजन ऊंडो बे, एटले गोतिर्थनी परे नथी. वली केवो ? वेल के जे पाणीनी हानी वृद्धि ते थकी विरहि के रहित . तब के ते कालोद समुज्ने विषे सुलियसमकाल महाकालसुरापुवपलिम के० लवणसमुज्ना सुस्थितदेव सरखा काल, अने महाकाल नामे जे बे देवता तेने रेहेवायोग्य पूर्व अने पश्चिम दिशाने विषे गौतमहीप सरखा बेबीप बे. ॥४०॥ लवणंमिव जहसंनव ॥ ससिरविदीवा इपिनायवा ॥ नवरं समंतउते ॥ कोसगुच्चा जलस्सुवरिं ॥ २४ ॥ अर्थ- लवणं मिव के लवण समुनी पेरे हंपि के०. श्रहींयां कालोद समुननेविषे पण जहसंजव के जेटला संनविएं तेटला ससिरविदिवा के चंद्रमा भने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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