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खघुक्षेत्रसमासप्रकरण. अर्थ- शेष बीजा देत्र, नदी अने जद प्रमुखनु पमाण के प्रमाण ते जह के० जेम जंबूदीवाउ के जंबूझीपथकी कोश्क जुगुणा के बमणा, कोश्क समा के सरखा, ते धाश्ए के० धातकीखंडने विषे जेम कह्या बे, तह के० तेम इहं के अहींयां पुष्कराईने विषे कोश्क धायसंमाज के० धातकीखंडथी बमणा, कोश्क धातकीखम सरखा पण नेया के जाणवा. एटले जे जंबूद्वीप सरखा धातकीखंड मांहे , ते धातकीखंड सरखा पुष्कराई मांहे डे, अने जे जंबूझीप थकी धातकीखंडमांहे बमणा कह्या वे ते पुष्कराईने विषे धातकी खंमथकी बमणा जाणवा; तथा धातकी खंमनेविषे दीर्घ वैताढ्य जंबूहीप सरखा वखाणे , यथा ॥ कंचण यमसुरकुरुनग ॥ वेयद्वाचेववहदीहाय ॥ विखंजबाहसमुस्सएणजहबूदीवुच्चा ॥१॥ पुष्कराईनेविषे तो दीर्घ वैताढ्यनो विस्तार बसें योजन कह्यो बे. यथा ॥ जवेहोवेयवाणं ॥ जोयणातु. उसयकोसाइं ॥ पणवीसंजविढो ॥ दोचेवसयाविचिना ॥२॥ अहींयां निश्चयनी वात झानी जाणे. ॥१४६ ॥
अडसीलरका चनदस ॥ सहसा तद नवसया य इगवीसा ॥
अग्निंतरधुवरासी ॥ पुत्वत्त विदीय गणियवो ॥२४॥ अर्थ- खित्तंकगुणधुवं के ए गाथामां जे रीते विधि कह्यो , ते रीते पुष्कराई क्षेत्रनो विस्तार आदि, मध्य तथा अंतनो जाणीएं. तेना ध्रुवांक कहे , अग्यासी लाख चउद हजार नवसें ने एकवीश एटला योजन तह के तथा प्रकारे ए अन्यंतर के० आदि क्षेत्रना ध्रुवांकनी राशि जाणवी. ते सर्व पुवत्त के प्रथमनी पेरे क्षेत्रना श्रांक साथे गणियवो के गणीएं, पडी बसें ने बार जागे विही के वेहेंचतां परिमाण लन्यमान थाय. ॥ २४ ॥
ग कोडि तेरलरका ॥ सहसा चचत्त सगसय तियाला॥
पुरकरवरदीवढे ॥ धुवरासी एस मशंमि ॥ १४ ॥ अर्थ- एक कोमी, तेर लाख चुमालीस हजार सातसें ने तेतालीश योजन एटली पुष्करवर छीपना मद्यमि के मध्य क्षेत्रनी एधुवरासी के ध्रुवांकराशी जाणवी. ॥श्व०॥
एगा कोडी अमती, सलक चनदत्तरीसहस्सा य ॥
पंचसया पणसहा ॥धुवरासी पुरकर ईते ॥४॥ अर्थ- एक करोड आडत्रीश लाख चमोतेर हजार पांचसे ने पांसठ एटली पुष्कराना अंत के० अंत्य क्षेत्रनी ध्रुवांक राशी जाणवी. हवे ए ध्रुवांक जाणवानी पेरे लखीए बैए. यथा ॥ पुरकरदलंमिसुयार ॥ धायश्संभाउजुगुणवासहरा ॥ खित्तंफ
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