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लघुक्षेत्रसमासप्रकरण.
१६१ हवे अंतरछीपनो परिधि कहे बे. पेहेला चतुष्कनेविषे नवसे ने उगणपचास योजननो परिधि , पनीना चतुष्कने विषेत्रणसो ने सोल योजननी वृद्धि करीएं. यथा ॥ सोबुत्तरतिसयजुय ॥ सपढमपरिहिवरावरचउकं पढमेनवगुणवन्न ॥ सावीएबारपणसही ॥१॥ तश्एपनरिकारसि ॥ चउडएपुणअढारसगणग्या ॥ जोयणबावीससया॥ तेरहियापंचमचउक॥२॥ पणवीसश्गुणतीसा ॥ बठेचरमेड वीसपणयाला॥परि हिअंतरदीवा सत्तचनकाणनायबा ॥११७
एमेव य सिदरिंमि वि॥ अडवीसं सवि हुँति बप्पन्ना ॥
एएसु जुअलरूवा ॥ पलिआसंखंसआज नरा ॥१७॥ अर्थ- एमेव के० ए पूर्वोक्त प्रकारे जे य के० वली सिहरिमिवि के शिखरी पर्वतने विषे पण ईशानकूण प्रमुख चार विदिशिनेविषे चार दाढा , तो एकेकी दाढाएं सात सात अंतर बीपले, तेवारे चारे दाढाना अडवीसं के बहावीश थाय. ए रीते हेमवंत तथा शिखरीना एका गणतां सविडंतिबप्पन्ना के सर्व मलीने बपन्न अंतरछीप जाणवा. एएसु के० ए सर्व बपन्न अंतर बीपोनेविषे जुअलरूवा के युगलरूप एवा नरा के मनुष्य जाणवा. अने पलियासंखंसथाउ के पक्ष्योपमना असंख्यातमे जागे तेनुं श्रायुष्य जाणवू, एवा युगलीश्रा त्यां वास करे . ॥ १० ॥
जोयणदस मंसतणू ॥ पहिकरंमाणमेसि चउसही ॥ अ
सणं च चनबा ॥ गुणसीदिण वच्चपालणया ॥१॥ अर्थ-ते युगलीथाना तणू के शरीर तेजोयणदसमंस के एक योजनने दशमे जागे जे, एटले बाउसे धनुष्यनां जंचां शरीर बे, वली एसि के ए युगलीयाना शरीरनेविषे पिहिकरंडाणचउसही के चोस पांसली . च के० वली ते युगलीआने असणं के० थाहारनी श्छा चउबाजे के एकांतरे उपजे . अने ए गुणसीदिणवच्चपालणया के जंगणाएंसी दिवश लगे अपत्य पालना करे . ॥ १५ ॥
पबिमदिसि सुध्यि लव, णसामिणो गोयमुत्ति श्गुदीवो ॥
उन वि जंबूलवणे ॥ रविदीया य तेसिं च ॥१०॥ अर्थ-मेरुपर्वतथकी पछिमदिसि के पश्चिम दिशिने विषे जगतीथकी बार हजार योजन लवणसमुखमांहे सुहियलवणसामिणो के सूस्थित एवे नामे जे लवणसमुजनो स्वामी देव , तेनो गोयमुत्तिश्गुदीवो के गौतम एवे नामे एक द्वीप ने, ते गौतमछीपना उनवि के बन्नेबाजु जंबूलवणेपुरवि के जंबुद्धीपना बे सूर्य अने
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