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लघुदेवसमासप्रकरण. के लवण समुज्नी शिखानी दिशिए कोसगं के बे कोश प्रमाण सब के सर्व कीपनो प्रकाश जाणवो. ते यंत्रमाहे लख्युं . ॥ १३॥
॥ हवे अंतरछीपना नाम कहे . ॥ सवे सवेश्यंता॥ पढमचनकमि तेसि नामाई॥
एगोरुय आनासिय ॥ वेसाणिय चेव लांगूले ॥१४॥ अर्थ- सत्वेसवेश्यता के सर्व अंतरछीप वेदिकावनखंडे करी मंमित जाणवा. अंतरछीपना पढमचउकमि के पेहेला चतुष्कने विष ईशानकूणथी दक्षिणावर्त गणतां तेसिनामाइं के ते छीपना जे नाम , ते कहे . एगोरुय के एक रुचक.बी थानाशिक, त्रीजुं वैषाणीक, चोथु लांगुलीक, ए चार नाम अनुक्रमे जाणवां ॥१४
बीयचनक्के हयगय ॥ गो सक्कुलि पुवकस्मनामाणो॥
___ आयंस मिंढग अ॥ गोपुवमुदा य तश्यंमि॥१५॥ - अर्थ-बीयचउक्के के अंतरछीपना वीजा चतुष्कनेविष हय, गय, गो, भने शकुली, ए चार शब्दने प्रत्येके कम के कर्ण शब्द जोमीएं, तेवारे जे नाम थाय ते नामे छीप जाणवा. एटले हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण, अने शत्कुलीकर्ण, एवां नाम जाणवा. हवे तश्यंमि के त्रीजा चतुष्कनेविषे आदर्श, मिंढक, श्रयः, गो, ए चार शब्दने प्रत्येके पुत्वमुदाय के पूर्वे मुख शब्द जोमीएं, तेवारे आदर्शमुख, मेंढमख. श्रयोमुख अने गोमुख, एवे नामे चार डीप बे. ॥ १५ ॥.
दय गय दरि वग्घ मुहा ॥ चनबए आसकरम दरिकम्मो ॥ __ अकस्म कम प्पावर, ण दीव पंचमचनकंमि ॥१६॥ अर्थ-चउनए के चोथा चतुष्कनेविषे हय, गय, हरी अने व्याघ्र, ए चार नामने आगल प्रत्येके मुहा के मुख शब्द जोमीएं तेवारे हयमुख, गजमुख, हरीमुख अने व्याघ्रमुख, एवा चार नामे चार छीपडे,अने अश्वकर्ण,सिंहकर्ण, अकर्ण अने कर्णप्रावरण एवे नामे दीव पंचमचनकमि के पांचमा चतुष्कने विषे अंतरछीप जाणवा ॥१६॥
उक्कमुदो मेदमुहो ॥ विकुमुदो विङादंत मि॥
सत्तमगे दंतंता ॥ घण वह निगूढ सुझाय ॥२१॥ अर्थ- उस्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख अने विद्युदंत, एवे नामे बहा चतुष्कना अंतरछीप बे, हवे सातमा चतुष्कनेविषे दंतंता के दंत शब्द चारेना अंतने विषे जोमीएं तेवारे घनदंत, लष्टदंत, गूढदंत अने सिझदंत, एवां चार नाम जाणवां. ए अहावीश अंतरछीपनां नाम कह्यां. ॥१७॥
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