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________________ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. श्यए ॥ हवे उपन्न अंतरछीपनी स्थिति केहे .॥ हिमवंतंता विदिसी॥ साणाश्गयासु चनसु दाढासु ॥ सग सग अंतरदीवा पढमचनकं च जगई ॥१२॥ अर्थ- हिमवंतंता के हेमवंत पर्वतना अंत एटले बन्ने बेडानेविषे समुनमांदे वे बे दाढा विदिशिनेविषे नीकली , हवे ते साणाश्गयासु के इशानकूण प्रमुख चार विदिशिने विषे चनसु दाढासु के चार दाढा प्राप्त थया उतां ते प्रत्येक दाढानेविषे सगसग अंतरदीवा के सात सात अंतरछीप बे, ते अंतरछीपमाहे पढमचउकं के पेहेला जे चार अंतरछीप ने ते जग के जगती थकी केटले र बे, ते कहे . ॥ ११॥ जोयणतिसएहि त ॥ सयसयवुढी य बसु चनक्केसु ॥ अन्नुन्न जगश्अंतरि ॥ अंतरसमविबरा सवे ॥२१॥ अर्थ- पेहेला चार अंतरछीप जगतीथकी त्रणसें योजन पूर , अने त के ते छीपनो विस्तार पण त्रणसे योजन बे. पडी सुचउक्केसु के चतुष्कनेविषे प्रत्येके अन्नुन्न के एक दीप श्रने बीजाबीपनी वच्चे जगतीवच्चे, अने छीपना विस्तारनेविषे सयसयवुट्ठी के सो सो योजननी वृद्धि जाणवी. एटले जे छीपने जगश्वंतरि के० जेटलो जगती थकी अांतरो , ते छीपनो अंतरसमविबरासवे के० ते अंतरसमान तेटलो विस्तार पण जाणवो. एटले पेहेला चार अंतरहीप जगती थकी त्रणसें योजन दे, तो तेनो विस्तार पण त्रणसें योजन प्रमाणे जाणवो. बीजुं चतुष्क जगती थकी चारसें योजन पूर बे, तो तेनो विस्तार पण चारसे योजन . एम सर्वनेविषे एकसो योजननी वृद्धि करतां सातमुं अंतरछीपनुं चतुष्क जगती थकी नवसे योजन पूर , तेहनो विस्तार पण नवसें योजन प्रमाण जे. ते यंत्रयी जाणवो. ॥१॥ ॥ हवे ए अंतरछीप पाणी उपर केटला उंचा ते कहे .॥ पढमचनक्कुच्चबहिं ॥ अढाइ य जोयण य वीसंसो॥ सयरिं सवुढिपुर ॥ मादिसिं सवि कोसगं ॥१३॥ अर्थ- अंतर छीपनुं पढमचनक्क के पेहेढुं चतुष्क ते बहिं के बाहेर जंबू की. पनी दिशाए अवाश्यजोयणश्यवीसंसो के अढी योजन उपर वीश अंस एटले पंचाणुथा वीश जाग एटलुं पाणीथी उपर उंचं जाणवू. उर के बीजा अंतरछीपना चतुष्कनेविषे पंचाणुथा सयरिसवुटि के सीत्तेर नागनी वृद्धि जाणवी, एटले बीजुं चतुष्क अढी योजन उपर पंचाणुश्रा नेवु जाग पाणीथी उंचं जाणवू, अने मसदिसिं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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