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________________ इंख्यिपराजयशतक. मुहंमि के प्रथम श्राधमां महुरा के मधुराबे, पण परिणाम के अंते विस मिव के विषनी परे निकाम के अत्यंत असार अने दारुणा के महा जयंकर एवा . तं के० तें, कालमणंतंजुत्ता के अनंतकाल यावत् नोगव्या, तो पण अऊ के हजी नवीमुत्तं के नथी त्याग करतो ? किंजुत्त के ए विषयसुखमां केम युक्त थ रह्यो ? ॥ ए॥ विषयरसासवमत्तो जुत्ताजुत्तं न जाणई जीवो ॥ र कलुणंपला पत्तो नरयं महाघोरं ॥१०॥जद निंबउम्मपत्तोकीडो कडुपि म नए महुरं ॥ तह सिधिसुदपरुका संसार उहं सुहं विति ॥ ११॥ व्याख्या- ए जीव, विषयरसासवमत्तो के विषयरसरूप श्रासव एटले मदिराए करी मदोन्मत्त होतो थको जुत्ताजुत्त के युक्तायुक्त एटले योग्य अने अयोग्यने नजागई के नथी जाणतो; पण पछा के पड़ी ज्यारे कक्षुणं के महापुःख जय एवा महाघोरं के अतिशय जयंकर नरयं के० नरकने पत्तो के पाम्यो, त्यारे रश के फूरेडे, अर्थात् पश्चात्ताप करे बे. ॥१०॥जह के जेम, निंबधम्मपत्तो के लींबमाना वृदनुं पांदडं ते कडुअंपि के कडवू दे तो पण कीमो के ते पांदडामा रहेनारो कीडो महुरं के मधुर एवं मन्नए के० माने जे; तह के तेम ए जीव सिधिसुहंपरुरका के मोक्षसुखथी परोक्ष जे संसारऽहं के संसारनां दुःख तेने सुहंविंति के० सुख तरिके जाणे . ॥ ११॥ अथिराण चंचलाणय खणमित्त सुहंकराण पावाणं ॥ उग्गइ निबंध गाणं विरमसु एआण नोगाणं ॥१॥पतायकामनोगा सुरेसु असुरेसु तदय मणुएसु॥नयजीवतुप्रतित्ती जलणस्सवकनियरेण ॥१३॥ व्याख्या-रे अजाण जीव ! तुं, अथिराण के अस्थिर, श्रने चंचलाणय के चपल एवा खणमित्त के क्षणमात्र सुहं के सुखने कराण के० करनारा एवा, अने पावाणं के महापापरूप तथा उग्गर के उर्गतिए निबंधणाणं के बंधन थवाना हेतुरूप जे जोगाणं के जोग, तेथी विरमसु के विरम-पागे उसर ? ॥ १२॥ सुरेसु के देवताउने विषे, सुरेसु के असुरदेवतानेविषे, तेमज मणुएसु के मनुष्यने विषे हे जीव ! तुं कामनोग के कामना लोग जे स्त्री विषयादिक सुख ते पत्ता के पाम्यो; तोपण जेम जलण के अग्नि कहनियरेण के काष्टोना समूहे पण तृप्ति पामतो नथी, तेम नयजीव तुप्रतित्ती के० हे जीव ! तने पण तृप्ति थती नथी. ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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