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________________ २४६ लघुदेवसमासप्रकरण. जेम नवने नवगुणा करिएं तेवारे एक्यासी थाय, ते वर्ग कहेवाय ने एम जाणवू. ते वर्ग कर्या पली तेने दशगुण के दशगुणा करिएं. एटले ते वर्गना श्रांकने श्रागले एक शून्य श्रापीएं तेवारे ते दशगुणा थाय. ते दशगुणा कर्या पली ते श्रांकनुं मूल शोधीएं. ते श्रावी रीते के, बेहेला श्रांक थकी विषम सम करतां धुरना कसुधी श्रावीएं, जो धुरने के विषम थावे तो एकलो धुरनुं क तेने वर्गने बांके शोधीएं, अने जो सम आवे तो धुरना बे श्रांक वर्गने बांके शोधीएं; एम करतां जे श्रांक लाने ते बमणो करी जपली पंक्तिना एकेका आंकने रासी मांडीएं, वली जपला श्रांकनी राशी साथे जेम सर्व नीचेना आंकनो नाग पहोंचे तेम वहेंचीएं, पड़ी जे यांक लाने तेना वर्गमां एक उपरनी श्रेणीनो अधिक अंक लेश्ने काढीएं, ए रीते उपरनी श्रेणीना बेहेमाना आंकसुधी वहेंचीएं. एम वर्गमूल करतां जे नीचेनी श्रेणीनेविषे श्रांक आवे तेनो अर्ड करिएं, तेटलो वाटला क्षेत्रनो परिधि जाणवो. वली वर्गमूल करतां जे गरे तेना जो कोश करवा होय तो चारवार गुणीएं, अने. जो धनुष्य करवा होए तो बे हजारवार गुणीएं, तथा अंगुल करिएं तो एक धनुष्यना बन्नु अंगुल करी गुणीएं. एम जे रीते नाग पहोंचतो होय तेवा प्रकारे गुणाकार करी पहेलाना बेद नाग पामीएं, पनी अनुक्रमे कोश, धनुष्य, अंगुल प्रमुख जे योजन उपर थावे, ते यंत्रथी जाणवू. ए रीते कमल, बीप, चूलिका, कूट, कांचनगिरि, कुंम अने मेरु प्रमुखनो परिधि जाणवो. ॥हवे पाडली गाथाना अर्डवडे गणित पद एटले योजन प्रमाण समचरंस करवानो विधि कहे ॥ विस्कंनपाय गुणि ॥ परिर तस्स गणीयपयं ॥१७॥ अर्थ-विरकंजपायगुणि के विष्कंचनो जे चोथो नाग तेनी साथे जेवारे परिधिनी संख्याए गुणीए तेवारे तस्सगणियपयं के तेनुं गणित पद थाय, ते एक जंबूझीप श्राश्री देखाडे बे. जेम जंबू छीपनुं परिधि त्रणलाख सोलहजार बसें ने सत्तावीश योजन , ते, विकंजना एकलाख योजननो चोथो जाग जे पचीश हजार योजन, तेनी साथे गुणिएं तेवारे सातसें नेवु कोमी बपन्न लाख ने पंचोत्तेर हजार थाय. वली परिधिने विषे त्रण कोश बे ते, पचीश हजार साथे गुणतां पंचोत्तर हजार कोश थाय. वली परिधिना धनुष्य एकसो ने श्रहावीश बे ते, पचीश हजार साथे गुणतां बत्रीश लाख धनुष्य थाय. वली परिधिना साडातेर अंगुलने, पचीस हजार साथे गुणीएं तेवारे त्रण लाख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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