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________________ २४७ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. सामीसामत्रीस हजार अंगुल थाय. ए सर्व श्रांकनी राशी जुदी जुदी मांमीएं, पब पूर्वोक्त पंचोतेर हजार कोशने चारजागे वहेंचतां पोणीगणीश हजार योजन थाय. पली धनुष्यना बत्रीस लाख श्रांकने श्राठ हजार जागे वहेंचतां चारसे योजन थाए. ए बंधा एकग करीएं तेवारे सातसें नेवु कोमी उपन्न लाख चोराणु हजार एकसो ने पचाश योजन थाय. तेवार पड़ी त्रण लाख ने साडीसाडत्रीस हजार अंगुलना श्रांक , तेने बन्नुजागे वहेंचतां पत्रिीससो ने पन्नर धनुष्य थाय. तेना कोश करीएं तो पोणावे कोश थाय. उपर पंदर धनुष्य ने साठ अंगुल वधे. तो पंदर धनुष्यना साठ हाथ थाय, अने साठ अंगुलना अढी हाथ थाय. ए बधा मली सामीबासठ हाथ थाय. ए. सर्व मली सातसें नेवु कोमी उपन्न लाख चोराणु हजार एकसो ने पचाश योजन उपर पोणाबे कोश अने साडीबास हाथ एटटुं जंबूझीपनुं गणित पद थाय बे. ते सूत्रनी गाथामा प्रथम कह्यु तेथी जाणवं. ॥ १७ ॥ ॥ हवे श्खु अने जीवानुं करण एक गाथामांहे कहे . ॥ - उगाहु नसूसुच्चि य ॥ जगणीसगुणो उसूकला होई ॥ विड सुपिहत्ते चगुण ॥ सुगुणिए मूलमिह जीवा ॥ १७ ॥ अर्थ- उगाहुउसूसुच्चिय के श्रा जंबूछीपनेविषे एक देश जे नरत देत्र ते चढावे. ला धनुष्यने श्राकारे बे, त्यां बाणना गमनी वचेनुं जे विष्कंन तेने श्खु कहीएं, ते श्खुना योजनने उगणीसगुणोउसूकलाहो के जंगणीशवार गुणीएं तेवारे कलानुं खु थाय. तो दक्षिण जरतनुं श्खु बसें आडत्रीस योजन उपर त्रण कला ले तेने उगणीसे गुणतां चार हजार पाचसें ने पचीश कला थाय, एटटुं कलानु श्खु जाणवू. हवे जीवातुं करण कहे जे. जेवारे जीवा करीएं तेवारे विजसुपिटुत्ते के० विगत एटले गयुं ने इखु एटखे बाण- पहोलपणुं ज्यांथी एटले कलारूप वृत्त क्षेत्र १ए00000 तेमांथी खुकला (४५२५ ) काढीएं बाकी रहे ( १७एप४७५) तेने चउगुण के० चारगुणा करीएं पली सुगुणिए मूल मिहजीवा के० खुकला साथे गुणीने तेनुं मूल शोधतां जे आंक श्रावे ते जीवा जाणवी. दक्षिण जरतादिकनेविष जीवा करवानो ए विधि जाणवो. ए जीवानुं मान यंत्र थकी जाणवु ॥ १७ ॥ ॥ हवे नरत वैताढ्य प्रमुख, धनुःपृष्ट कहे . ॥ जसुवग्गि गुणजीवा ॥ वग्ग जुए मूल दोश् धणुपिठं ॥ धणुउगविसेस सेसं ॥ दलियं बाहाउगं होई॥ १० ॥ अर्थ- उसुवग्गि के खुनो वर्ग करी तथा गुण जीवा के गुणो जीवानो वर्ग करी वग्गजुए के ए बे वर्गयुक्त एटले नेलीने पड़ी तेनुं मूल के मूख शोधता जे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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