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________________ लघुक्षेत्र समासप्रकरण. २४५ अर्थ - इह के० या जंबूद्वीपने विषे वलयाकारे परिधि, ते फरता त्रण लाख सोल हजार बसें ने सत्तावीश योजन त्रण कोश छाने एकसो ने अहावीस धनुष्य उपर साडातेर अंगुल समहियाय के० समाधिक एटले किंचित् अधिक जाणवो. ॥ १०५ ॥ || हवे जंबूद्वीपनुं गणित पद कहे बे. ॥ सगस नया कोडी ॥ लका उप्पल चडणवइ सदस्सा ॥ ससयं पणडुको, ससढबास ठिकरगणियं ॥ १०६ ॥ 10 अर्थ - सातसें नेवु कोमी उपन्न लाख चोराए हजार ने सहसयं के० एकसो ने पचाश एटला योजन उपर पोणाबे कोश अने सढबास ठिकर के० साडाबासठ हाथ एट गयिं के गणितपद थाय. गणित एटले लाख योजननुं जे वृत्त विष्कंन प्रमाण जंबू द्वीप बे, तेना जेवारे एक योजन प्रमाण समचरंस खंग करिएं, तेवारे तेनेगतिपद कहिएं. ते खंगनी संख्या १९०५६००४१५० योजन अने पोणाबे कोश उपर साढाबासठ हाथ जाणवी ॥ १०६ ॥ ॥ दवे परिधि प्रमुख आठ बोल कहे बे. ॥ वट्टपरिदिं च गणियं ॥ अंतिमखंडाइ सुजियं च धणुं ॥ बादं पयरं च घणं ॥ गणियवममेदि करणेदिं ॥ २८७ ॥ अर्थ-एक, वह के० वाटला क्षेत्रनुं परिहिंच के० परिधि; बीजुं, वृत्तक्षेत्रना जे समचरंस योजन प्रमाण खंम करिएं ते गणितपद; त्रीजुं, अंतिम के० बेहेला खंगादि - कनुं जसु के० इखु एटले बाण करिएं; चोथुं, जियं के० जीवा ते धनुष्यने याकारे जरत वैताढ्य प्रमुखनी पणन; पांचमुं धणु के० ते श्रर्द्ध चंद्रमाने श्राकारे जरत प्रमुख जे क्षेत्र बे तेनुं पुग्नुं जाग, तेने धनुष्पृष्ट कहे बे; बहुं, बाहं के० वैताढ्य प्रमुख पर्वत तथा क्षेत्रना बेहेडानुं जे परिमाण ते, करवुं ते बाद जाणवी; सातमुं, पयरं के० प्रतर एटले लांबपण, तथा पहोलपणुं ज्यां सरखुं होय ते; आठमुं, घन के० लांबपणे, पहोलपणे अने जामपणे जे सरखुं होय ते, घन कदेवाय बे. ए घाव बोल ते एएहि के० आागल कहे बे जे करणेहिं के० उपाय ते विधिएं करी गणियव के गुणो वर्त्तारो करो, जेम सर्व परिधि प्रमुख जे आठ बोल बे ते जाणवामां आवे ॥ २८७ ॥ ॥ हवे प्रथम परिधि जाणवानो विधि, अर्द्ध गाथाएं करि कहे बे. ॥ विजवग्गदद्गुण || मूलं वट्टस्स परिरर्ज दोई ॥ अर्थ - विरकंज के० वाटला क्षेत्रनो जे मध्य विस्तार तेने विष्कंन कहिएं, ते प्रथम जेटला योजननो विस्तार होए तेटला योजन मांडीएं तेनो वग्ग के० वर्ग करिएं, ते या रीते के, जेटला यांक मांड्या होए तेने तेटलागुणा करिएं तेने वर्ग कहिएं. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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