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लघुदेवसमासप्रकरण.
२३५ अर्थ- एक कल, बीजो सुकन्छ, त्रीजो महाकछ, चोथो कछावर्त, तथा प्रकारे पांचमो श्रावर्त्त, बहो मंगलावर्त्त, सातमो पुष्कल, श्राठमो पुष्कलावति, ॥ १५४ ॥ नवमो वन, दशमो सुवछ, अगीधारमो महावछ, बारमो वहावर्त, विय शब्द पदपूर्णार्थ बे. तेरमो रम्य, चौदमो रम्यक, चेव के निश्चे पंदरमो रमणि, सोलमो मंगलावती, ॥ १५५ ॥ सत्तरमो पद्म, अढारमो सुपद्म, उगणीशमो महापद्म, वीशमो पद्मावती, तो के तेवार पड़ी एकवीशमो शंख, बावीशमो नलिन एवे नामे विजय डे. त्रेवीशमो कुमुद, चोवीशमो नलिनावती, ॥१५६॥ पचीशमो वप्र, बबीशमो सुवप्र, सत्तावीशमो महावप्र, अहावीशमो वप्रावती, तिय शब्द पदपूरणार्थे बे. उगणत्रीशमो वल्गु, तदा के० तथा प्रकारे त्रीशमो सुवल्यु, एकत्रीशमो गंधिल अने बत्रीशमो गंधिलावती.१५७
॥ हवे वली गाथा बंद कहे .॥ एए पुत्वावर गय, वियह दलियत्तिनई दिसिदलेसु ॥
नर-पुरीसमा ॥श्मेहि नामेदि नयरी ॥ १५॥ अर्थ-एएपुवावरगय के ए कलादिक बत्रीश विजय जे ते पूर्व अने पश्चिम दिशि गत जे वियन के लांबा वैताढ्य पर्वत तेणे जरत तथा ऐरवतनी पेरे विजयना दलियत्ति के अर्ड कीधा ने एटले एकेकी विजयना बे बे खंग कीधा , वली एकेका विजयने विषे बेबे नदी के तेणे करी खंग कीधा बे. नईदिसि के० नदीदिशि दक्षणार्ड विजयने विषे नरक पुरीसमा के दक्षण जरतनी अयोध्या नगरी सरखी श्मेहि नामे हिनयरी के० ए श्रागली गाथामां कहेशे एवा नामे बत्रीस नगरी . ॥ १७ ॥
॥ हवे ए बत्रीस नगरीउनां नाम अनुक्रमे कहे जे. ॥ खेमा खेमपुरा वीय ॥ रिहा रिहावा य नायबा ॥ खग्गी मंजूसा विय ॥ सहपुरी पुंडरीगिणीय ॥२५॥ सुसीमा कुंडला चेव ॥ऽवराश्य पहंकरा ॥ अंकाव पम्हा वश्॥ सुना रयणसंचया॥१६०॥आसपुरा सींदपुरा महापुरा॥ तद य चेव विजयपुरा ॥ अवराश्या य अवरा ॥ असोग तद य वीयसोगा य॥ १६१ ॥ विजयाय वेजयंति ॥ ज.. यंति अपराजिया य बोधवा ॥ चक्कपुरा खग्गपुरा ॥ हो
अवजा अर्मजाय ॥१६॥ अर्थ- देमा, देमपुरा, विय के० वली अरिष्टा, अरिष्टवती, नायवा के जाणवी.
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