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________________ लघुक्षेत्र समासप्रकरण. कावइ पदावर | सीविस तद सुदावदे चंदे ॥ सुरे नागे देवे ॥ सोलस वरकार गिरिनामा ॥ १५१ ॥ - एक चित्र, बीजुं ब्रह्मकूट, त्रीजुं नलिनीकूट, चोथुं एकशेल कूट, य के० वली पांच त्रिकूट, बहुं वैश्रमण, अहींयां विय ए शब्द पादपूरणार्थे बे. सातमुं खंजन, आठमुं मातंजन, चेव पदपूरणार्थे बे ॥ १५० ॥ नवमं अंकापाति, दशमं पद्मापाति, गीमुंशीविष, तह के० तथा बारमुं सुखावह, तेरमुं चंद्र, चजदमुं सूर, पंदरमुं नाग, अने सोलमुं देव, ए सोल वक्षस्कार गिरिनां नाम जाणवां ॥ १५१ ॥ ॥ दवे बार अंतर नदीनां नाम कहे . ॥ गादाव दाहावर || वेगवई तत्त मत्त उम्मत्ता ॥ खीरोय ॥ सीय सोया ॥ तद तो वादिणी चेव ॥ १५२ ॥ नम्मी मालिणि गंजी, रमालिणी फेणमालिणी चेव ॥ सच्चवि दस जोय || उंमा कुंडुनवाएया ॥ १५३ ॥ अर्थ- ग्राहवति, प्रवति, वेगवति, तप्ता, मत्ता, उन्मत्ता, खीरोदा, शीतस्रोता, तथा अंतर्वाहिणी, चेव पदपूरणार्थे बे ॥ १५२ ॥ उन्मीमालिनी, गंजीरमालिनी, फेनमालिनी, चेव पदपूर्णार्थ जाणवुं. एवा नामे बार अंतर नदी जाणवी. ते धुरे तथा Masala o सर्व नदिर्ज पण दस जोयण ठंडा के० दश योजन प्रमाण ठंडा जे कुंकुनवा के० नीलवंतने नीचे व कुंड बे, तथा निषधने नीचे पण व कुंड बे, ते थकी व एटवे निकली एकी एया के० ए बार अंतर नदी ते कुंमने नामेज जाणवी. जेम ग्राहवंत कुंम थकी ग्राहवती नदी निकली. ए रीते नदीने नामे कुंडनां नाम जवां हीं नदीनी देवीनो द्वीप प्रमुख जे विशेष प्रकार बे ते सर्व रोहितांशाने परिमाणे जाणवो ॥ १५३ ॥ २३४ Jain Education International ॥ वे बत्रीश विजयनां नाम चार अनुष्टुप् छंदे करी कहे बे. ॥ har सुकच य महा, को कच्चावई तदा ॥ यावत्तो मंगलावत्तो ॥ पुरकलो पुस्कलावई ॥ १५४ ॥ वचो सुवचो य महा, वो वच्चावई विया ॥ रम्मो य रम्मर्ज चेव ॥ रम मंगलावई ॥ १५५ ॥ पम्दो सुपम्दो य मदा, पम्दोपम्हावई तदा ॥ संखो नलिए नामा य ॥ कुमुदो नखिणावई ॥ १५६ ॥ वप्पो सुवप्पो य मदा, वप्पो वप्पावई विय ॥ वग्गू तदा सुवग्गू य ॥ गंधिलो गंधिलावइ ॥ १५७ ॥ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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