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________________ २३३ लघुदेवसमासप्रकरण. वन मुखे रुंधी, ए सर्व योजन एकग करीएं तेवारे चोस सहस्र अने पांचवें चो. राणु योजन थाय. ए एक लद योजन प्रमाण जे जंबु बीप, तेमांहेश्री काढीएं, तेवारे पांत्रीश सहस्र चारसे ने बयोजन गरे. हवे अहींयां विजयनुं परिमाण वांबीएं बैएं तेमाटे गया जे पांत्रीस सहस्त्र अने चारसें योजन ते सोल विजय ने माटे सोल नागे वहेंचीएं तेवारे बावीससे अने बार योजन लाने अने उपर चउद योजन जगरे, तेना प्रत्येक योजनना श्राप नाग करिएं तेवारे एकसो ने बार जाग थाएं. ते सोल नागे वहेंचतां आगया सात नाग लाने एटले एकेक विजयतुं परिमाण बावीससे ने बार योजन उपर आठीश्रा सात जाग, एटवू जाणवू. ॥ १४ ॥ ॥ हवे विजयादिकनुं लांबपणुं कहे .॥ सोलससहस्स पण सय ॥ बाणनया तह य दो कला य॥ एएसिं सवेसि ॥ आयामो वणमुदाणं च ॥१४॥ अर्थ- सोलससहस्स के सोल सहस्र अने पणसय के पांचवें ने बाण उया के बाणु योजन तहय के तेमज दोकलाय के बे कला उपर एटचं एएसिसवेसि के ए सर्व विजय तथा वदस्कार तथा अंतर नदी जे जे ते सर्वनुं थायामो के लांबपणुं जाणवू. च के वली सीतोदा तथा सीताने अंते पूर्व तथा पश्चिम दिशे जे वणमुहाणं के चार वनमुख , तेहy पण एटर्बु लांबपणुं जाणवू. ॥ १७ ॥ ॥ हवे वदस्कारर्नु उंचपणुं कहे जे.॥ गयदंत गिरिखुच्चा ॥ वस्कारा ताणमंतरनईणं ॥ वि. जयाणंच निहाणा, मालवंता पयादिण ॥ २४ए॥ अर्थ- ते वक्षस्कार पर्वत गयदंतगिरिवुच्चा के गजदंत गिरिनी पेरे उंचा बे, जेम गजदंतगिरि कुल गिरिने समीपे चारसे योजन ऊंचा बे, बेहेडे मेरुपर्वतनी पासे पांचसें योजन ऊंचा , तेम ए वक्षस्कार पण कुलगिरिने समीपे चारसंयोजन उंचा, अने बेहेडे सीतोदा तथा सीताने समीपे पांचसें योजन ऊंचा बे. हवे वरकाराताणमंतरनईणं विजयाणंच के सोल वक्षस्कार पर्वतना तथा बार अंतरनदीना अने बत्रीस विजयना अनिहाणा के नाम कहे बे. ते सर्व मालवंता के माल्यवंत नामे जे गजदंतगिरि , ते थकी पयाहिण के दक्षिणावर्ते जाणवा. ॥ १४ ॥ ॥हवे अहीं प्रथम सोल वक्षस्कारनां नाम कहे .॥ चित्ते य बनकूडे ॥ नलिणी कूडे य एगसेले य॥ तिजडे वेसमणे वि य ॥ अंजण मायंजणे चेव ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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