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लघुदेत्रसमासप्रकरण. कूडा के जिननवने सहित आठ कूट जाणवा. पण ते कूट केहवा जे? तो के-बार योजन मूलें विस्तार दे श्रने चार योजन शिखरे विस्तार बे तथा पाठ योजन ऊंचा एवा पाठ कूट बे. ते तरुकूट कह्या ले. तह के तथा प्रकारे सुरकुरा के देवकुरुके. त्रना अवरके के पश्चिम दिशिना अर्डनेविषे राययपीढे के० रूपानी पीठिकानी उपर सामलिरुको के० शाल्मलीवृद ले ते गरुलस्स के गरुलदेवताने वसवायोग्य जाणवो. एवमेव के एहनो पण विस्तार एज जंबूवृक्षनी पेठे जाणवो. ॥ १४५ ॥
॥ हवे महाविदेहमा बत्रीस विजय वखाणे बे. ॥ बत्तीस सोल बारस ॥ विजया वरकार अंतरनई ॥
मेरुवणार्ड पुवा ॥वरासुकुलगिरिमद नयंता ॥१४६॥ अर्थ- बत्तीस के बत्रीस तथा सोल के सोल अने बारस के0 बार ए सर्व अनुक्रमे विजया के विजय तथा वरकार के वृक्षस्कार पर्वत अने अंतरनज़ के० अंतरनदी जाणवी. एटले बत्रीस विजय तथा सोल वक्षस्कार पर्वत अने बार अंतरनदी जाणवी. ते मेरुवणा के मेरुना जमशालवन थकी पुवावरासु के पूर्व दिशि अने पश्चिम दिशिनेविषे कुल गिरिमहनयंता के प्रथम बे विजय पड़ी बे वक्षस्कारपर्वत वली बे विजय तेवार पली बे अंतरनदी वली बे विजय एम अनुक्रमे एकेकीदिशे सोलविजय तथा आठ वदस्कार पर्वत तथा अंतरनदी थाय. ते बेपासाना एकग करिएं त्यारे बत्रीस विजय तथा सोल वक्षस्कार पर्वत अने बार अंतर नदी थाय. ॥१४६ ॥ शति गाथार्थ. ॥
॥ हवे बत्रीस विजयना पोहोलपणानुं प्रमाण कहे जे.॥ विजयाण पित्ति सग, ह नाग बारुत्तरा वीससया॥
सेवाणं पंचसए ॥ सवेश् नइ पन्नवीससयं ॥ १४ ॥ अर्थ-वीससया के बावीससें अने बारुत्तरा के बार योजन उपर एक योजनना श्रह के आठ जाग करिएं तेहवा सग के सात नाग एटटुं विजयाण पिहुत्ति के एकेका विजयतुं पोहोलपणुं जाणवं. तथा सेलाणं के वक्षस्कार पर्वत जे जे ते पंचसए के पांचसे योजन पोहोला . तथा सवेश्नश्पन्नवीससयं के सर्व जे अंतरनदी ले ते एकसो ने पचीस योजन पोहोली बे. हवे ए विजयादिनुं पोहोलपणुंजाणवानो उपाय लखे . चउपन्न सहस्र योजन नूमि मेरु अने नशालवने रंधी, तथा चार सहस्र योजन नूमी वक्षस्कारपर्वतोए रंधी , तथा सातसें ने पचास योजन नूमिना अंतरनदीए रुंध्या , तथा पांच सहस्र बाउसें चुमालीस योजन नूमी बे
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