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॥ श्री॥ ॥ अथ इंद्रियपराजयशतक प्रारंभः॥
सुचिअ सूरो सोचेव पंमि तं पसंसिमो निचं ॥ इंदिय चोरेसिया, न बुंटिअं जस्स चरणधणं ॥१॥ इंदिय चवल तुरंगो, जुग्ग म ग्गाणु धाविरे निचं ॥ नाविअनवस्सरूवो रंजिणवयणरस्सीहिं॥२॥
व्याख्या- तेहज सूरो के शूर, तेहज पंडि के पंडित, तं के तेनेज, प्रसंसिमो निच्चं के निरंतर हुं प्रशंसु डं, के, जेहy सया के सदा, इंदियचोरे के० इंजिउरूप चोरोए, चरणधणं के चारित्ररूपी धन नथी खुंट्यं ॥१॥ इंदियचवलतुरंगो के इंजियोरूप जे चपल घोडा , ते उग्गर के उर्गतिना, मग्गाणु के० मार्गे, निचं के निरंतर, धाविरे के० दोडवानुं करे बे, तेने जवस्सरूवो के संसार स्वरूपने जेणे नावि के जाव्यो , ते प्राणी जिणवयणरस्सीहिं के श्रीवीतरागनां वचनरूप रस्सीहिं के दोरमीए करीने रंजई के रुंधे . १
इंदिय धुत्ताणमहो तिखतुस मित्तंपि देसु मा पसरं॥जश दिनो तो नी उ जबखणो वरिस कोडिसमो॥३॥अजि इंदिएदि चरणं, कळंवघुणे दि किर असारं ॥ तो धम्मबिदिदढं, जइ अचं इंदिय जयंमि॥४॥ व्याख्या- अहो उत्तमजन ! इंदियधुत्ताणं के० इंजियरूप धूर्तने, तिलतुसमित्तंपि के तिखना बोतरा जेटलुं पण प्रसरं के० पसरवा, देसुमा के देश नही. जशदिनो के जो पसरवा दीधो तो नी के लीधुं. शुं लीधुं ? ते कहेजे, जल के ज्यां खणो के क्षणमात्रमा पण वरिसकोडीसमो के० वरसनी कोडी समान उःखमय , ते, छःख लीधुं. ॥३॥ जेणे इंजिन जीती नथी तेनुं चारित्र, कळं विघुणेहिं कीर असारं-कठविघुणेहिं के काष्टमा रहेनारा कीडाए जेम काष्टने करडीने असारं के० असार कीर के को. एवं असार जाणवं. ए माटे धमबि के धर्मना अर्थि जने इदिजयंमि के इंजिर्ड जीतवाने माटे दह जश्श्रव्वं के० दृढ यत्न करवो. ॥४॥
जद कागिणी इदेऊ, कोडिं रयणाणदारए कोई ॥ तद तुब विसय गिधा जीवादारंति सिदिसुहं ॥ ५॥ तिलमित्तं विसयसुदं उदं च गिरिरायसिंगतुंगयरं ॥ नव कोडीदिं न निह जंजाणसुतंकरिद्यासु ॥६॥
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