SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लघुदेत्रसमासप्रकरण. २२७ ho ए वे युगलियानां क्षेत्र बे, ते चंदद्धसंठिया के० श्रर्द्धचंद्रमाने श्राकारे रह्यांबे, दशसहस विसुद्ध के० दश सहस्र योजने रहित जे महाविदेह क्षेत्रनुं पिहुलाई के० विस्तार तेनो दलमाण एटले अर्द्ध करता जेटला योजन थाए तेटला योजन कुरुक्षेत्रना मध्यजागनुं पोहोलपणं जाणवुं. ते केम? तो के महा विदेद क्षेत्रनो विस्तार तेत्रीस सहस्र बसें ने चोरासी योजन थने उपर चार कला बे; तेमांदेषी मेरुनुं विष्कंन दश सहस्र योजन काढिएं तेवारे तेवीस सहस्र बसें ने चोरासी योजन छाने उपर चार कला उगरे; तेहनुं श्रर्द्ध अगी धार सहस्र याठसें ने बेतालीस योजन उपर कला बे एटलो विष्कं कुरुक्षेत्रना मध्यजागने विषे जावो. ॥ १३० ॥ ॥ हवे कुरुक्षेत्रना गिरि कहे बे. ॥ नइ पुवावरकुले ॥ कणगमया बल समा गिरी दो दो ॥ उत्तरकुरान जमगा ॥ विचित्तचित्ता य इयरीए ॥ १३१ ॥ - नवावरले के० नदी जे सीतोदा तथा सीता तेमना पूर्व अने पश्चिमदिशें जे बे तट तेहने विषे कणगमया के० कनकमयी एवा तथा बलसमा के० बलकूट बे ते समा एटले सरखा सहस्र योजन उंचपणुं वे अने सहस्र योजन मूर्खे विस्तार तथा पांच योजन उपर शिखरने विषे विस्तार बे जेमनो एहवा गिरिदोदो के० बे बे पर्वत बे. ते उत्तर कुराज के० उत्तर कुरुक्षेत्रने विषे जमगा के० जमक एवेविचित्तचित्तायश्यरीए के० देवकुरुक्षेत्रने विषे सीतोदा नदीना पूर्वदिशिना तटने विषे विचित्रनामे कनकगिरि बे, अने पश्चिम दिशिना तढ़ने विषे चित्रनामे कनक पर्वत बे ॥ १३१ ॥ पर्वत, ॥ दवे कुरुक्षेत्रनी नदीना यह वखाणे बे. ॥ नवद दीदा पण पण || दरया उडदारया इमे कमसो ॥ सिदो तद देवकुरु ॥ सूरो सुलसो य विकुपदो ॥ १३२ ॥ अर्थ - नवहदीदा के० नदीना प्रवाहने विषे दीर्घ एटले लांबपएं बे जेमनुं एहवा पण पण के पांच पांच दरया के० अह एकेका कुरुक्षेत्रने विषे बे, वली ते Se heard ? दारया के० दक्षिण ने उत्तर दिशे वे वे बे बारां जेमने विषे एहवा पांच ह बे, तेनां नाम बे ते इमे के० या कमसो के० अनुक्रमे कहे बे. एक सिहो के० निषध तह के० तथा बीजो देवकुरू, त्रीजो सूरा के० सूरः, य के० वली चोथो सुलसो के० सुलस ने पांचो विकुपदो के० विद्युत्प्रन, ए पांच ग्रह देवकुरुक्षेत्रमा सीतोदानदीना जाणवा. इति गाथार्थ ॥ १३२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy