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________________ २६ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. नवणेसु के जवन डे ते जवनने विषे चिति के ते दिक्कुमारिका रहे . ए रवाना स्थानकनु सामान्यपणुं कह्यु. हवे विशेषपणे तेमने रदेवानां जे स्थानक बे, ते ज्ञानवंत गुरुना वचनश्री जाणवां. तथा जोगंकरा, जोगवती, सुनोगा, नोगमालिनी, सुवत्सा, वत्स मित्रा, पुष्पमाला अने अनंदिता ए तेमनां नाम जाणवां. ॥ १२ ॥ ॥ हवे गजदंतगिरिनु उंचपणुं तथा पहोलपणुं कहे जे.॥ धुरि अंते चल पणसय ॥ उच्चत्ति पिडुत्ति पणसयाऽसिसमा ॥ दीहत्ति श्मे उकला ॥ उसयनवुत्तरसदसतीसं ॥ २२ए ॥ अर्थ-इमे के ए चार जगदंत गिरि ते धुरि के ज्यां कुलगिरि थकी नीकल्या बे, त्यां नीलवंत निषधनीपरेंचसय के चारसे योजन उच्चत्ति के उंचा, तथा अंते के अंतने विषे मेरुने ज्यां मल्या बे, त्यां पणसय के पांचसे योजन उच्च के ऊंचा , श्रने मूलने विषे पणसयपिहुत्ति के पांचवें योजन पोहोला , अने अंते के डे तो असिसमा के तरवारनी धारनी पेठे अंगुलने असंख्यातमे जागे पोहोला बे; तेमाटे असि एटले जे तरवार ते सदृश बे. तथा ते गजदंतगिरिनुंलांबपणुं सहसतीसं के त्रीस हजार अने उसय के० बसें ने नवुत्तर के नव योजन श्रने उपर ब कला के कला एटलुं . ए चार गजदंतगिरिनु दीर्घपणुं कह्यु. तथा ते बे गजदंतगिरि लांबपणे जेवारे एका करीएं तेवारे कुरुक्षेत्र धनुष्यने थाकारे डे, ते धनुष्यन पृष्ट कहिए बाहेरनुं पुग्नुं जाग थर्डचंडाकार, थाए, तेहना योजन साठ सहस्र चारसें ने अढार तथा उपर कला बार एटले कुरुक्षेत्रनुं धनुपृष्ट थाए; सीतोदा तथा सीतानदीनी पचास योजन प्रमाण पोहोली जे जीजी बे, ते थकी बबीससहस्र चारसें ने पंचोतेर योजन बे पासे वेगला गजदंतगिरि , ते बे पासे एटला वेगला बे,माटे बबीस सहस्र चारसे ने पंचोतेर योजन . तेने बमणा करी जीजीनो विस्तार पचास योजनमांदे नेलतां त्रेपन्न सहस्र योजन कुरुक्षेत्रनी जीवा थाय. जीवा एटले धनुष्यनी पणन ते सरिखी माटे जीवा कहिए. इति गाथार्थ ॥ १२॥ ॥ इवे कुरुक्षेत्रना मध्यनागनुं पहोलपणुं कहे , मध्यनागना पोहोलपणाने खु कहिएं. ते केम के श्खु एटले तीर तेनुं जे गम तेने श्खु कहिएं, ते कहे जे.॥ ताणं तो देवुत्तर ॥ कुरान चंदसंठियान ज्वे ॥ दससदस विसुद्धमदा ॥ विदेददलमाणपिहुला ॥ १३० ॥ अर्थ-ताएंतोदेव के ते गजदंत गिरिमध्ये मेरुपर्वत थकी दक्षिण दिशनेविषे देवकुरुक्षेत्र बे, अने मेरुथी उत्तरदिशिनेविषे उत्तरकुरान के उत्तरकुरुक्षेत्र ने, ज्वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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