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________________ अनुक्रमणिका. शए पाठ प्रकारना पुजलपरावर्त्तनुं कालमान समजाववाने कालमानना मुहू तथी मामीने पढ्योपमादिक सर्व नेद विस्तारे कह्यां बे. .... ....दएर ३० उत्कृष्ट तथा जघन्य प्रदेशबंधनुं स्वरूप तथा ते बंधना खामी कह्या . .... ७०५ ३१ प्रदेशबंधने विषे सादि अनाद्यादिक चार नांगा कह्या . ..... ३५ योग्यस्थानक, खरूप तथा अल्पबहुत्व कहीने प्रदेशबंध समाप्त कस्यो ३३ प्रकृतिस्थित्यादिक चार बंधने विषे बंधना विशेष हेतु कह्या ले..... .... ३४ चौद राजलोकनी श्रेणी, प्रतर तथा घनादिकनुं मान कहुं . .... .... ११५ ३५ उपशमश्रेणी तथा ६पकश्रेणीनुं स्वरूप कह्यु . .... .... .... ७१७ २३ त्रेवीशमो सप्ततिका नामा षष्ठ कर्मग्रंथ डे तेनी अनुक्रमणिका लखीए बीए. १२५ १ प्रथम मंगलाचरण तथा प्रयोजनादिक चार वानां कह्यां . .... .... ७५ २ सामान्यपणे मूल आठ प्रकृतिनां नाम तथा खरूप कह्यां . .... .... । ३ मूल आठ प्रकृतिना बंध, उदय अने सत्तानां स्थानक कह्यांने तथा कयुं कर्म बांधतां कयां बंधस्थानक होय ? तथा कयी प्रकृतिने उदये केटलां उदयस्था. नक होय, तथा कयी प्रकृतिनी सत्ताए कयों कयों सत्तास्थानक होय तथा एनां बंध, उदय, सत्ता, स्थानकनो परस्पर संवेध तथा चौद गुणगणे एना नांगा कह्या बे. ४ उत्तर प्रकृति श्राश्री संवेध कह्यो बे, ते मध्ये प्रथम ज्ञानावरणीय श्रने अंत राय बे कर्मनी उत्तर प्रकृतिना पूर्वोक्त रीतेज बंध, उदय तथा सत्तास्थानक संवेधे नांगानी प्ररूपणा सविस्तर करी डे..... .... .... ७३४ ५ तेमज दर्शनावरणीय कर्मनी उत्तर प्रकृति आश्री बंधादिक स्थानक कह्यां ले तथा तेनो परस्पर संवेध देखाड्यो .. .... ६ वेदनीय, श्रायु अने गोत्र, ए त्रण कर्मनी उत्तर प्रकृतिना नांगा कह्या ..... ७३७ मोहनीय कर्म उत्तर प्रकृतिनां बंधादिक स्थानकोनो संवेध कह्यो . ... भर नामकर्मनी उत्तर प्रकृतिनां बंधादि स्थानको कहीने पनी संवेध कह्यो ..... ७६१ एचौद जीवस्थानके प्रथम ज्ञानावरणीय तथा अंतराय कर्मना बंधोदय सत्ता संवेधे नांगा कहीने पठी दर्शनावरणीय, वेदनीय, गोत्र,आयु, मोहनीय अने नामकर्मना बंधादिकने संवेधे मांगा कह्या जे. ___ .... .... अज्ए १० चौद गुणगणे ज्ञानावरणीय अने अंतराय कर्मना नांगा कह्या बे. ११ चौद गुणगणे दर्शनावरणीय कर्मना बंधादि स्थानना नांगा कह्या . .... पुए १५ चौद गुणगणे वेदनीय अने गोत्रकर्मना बंधादि स्थानना नांगा कह्या..... ००१ .... प्रश्न .... ७३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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