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________________ अनुक्रमणिका. ११ सर्व उत्तर प्रकृतिनां सामान्ये उगणत्रीश बंधस्थानक डे तेनां नाम कहीने पड़ी तेने विषे नूयस्कारादिक चार बंध कह्या बे. ..... ...... एए १२ प्रत्येक कर्मनी उत्तर प्रकृतिनां विशेषे जूदां जूदां बंधस्थानक कहीने तेने विषे नूयस्कारादिक चार बंध विचास्या . .... .... .... .... ६०० १३ मूल प्रकृतिनो जघन्योत्कृष्ट स्थितिबंध तथा अबाधाकाल कह्यो बे. ... ६०५ १४ उत्तर प्रकृतिनो जघन्योत्कृष्ट स्थितिबंध तथा श्रबाधाकाल सर्व जीवोने विषे कह्यो . ते मध्ये कुक्षक नवनुं मान पण कडं बे. .... .... .... ६०७ १५ उत्तर प्रकृतिना उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबंधस्वामी गुणगणे तथा जीव नेदे कहीने प्रकृतिबंधनो अधिकार पूर्ण कस्यो . .... .... .... ६२१ १६ उत्कृष्टादि स्थितिबंधने विषे उत्कृष्टादि तथा साद्यादि चार नांगा कह्या . ६५६ १७ गुणगणा आश्री उत्कृष्ट जघन्य स्थितिबंध कह्यो ..... .... ६ए १० एकेडियादिकने विषे हीनाधिक स्थितिबंधनुं अल्पबहुत्व कयुं . .... ६३० रए मनादिक योगर्नु खरूप तथा योगस्थानकना स्वामी कह्या . .... .... ६३५ २० चौद जातिना जीवने कर्मबंधना जघन्य अने उत्कृष्ट स्थितिना वचमाने आंतरे जेटला समय तेटला स्थितिबंधनां स्थानक ले. तेनुं अल्पबहुत्व तथा एकेकी स्थितिनां अध्यवसायस्थानकनुं अल्पबहुत्व कडं डे. .... .... ६४० १ नरकत्रिकादिक एकतालीश प्रकृति, उत्कृष्ट बंधांतर तथा अबंधकाल पूरवानो उपाय तथा केटलीएक प्रकृतिनो सतत बंधनो काल कहीने स्थितबिधनो अधिकार पूर्ण कस्यो बे..... . .... .... ६४२ २२ रसबंधना अधिकारमा रसविनाग वर्गणा तथा स्पर्डकनुं स्वरूप तथा एक गणीश्रा, बेगणीश्रादिक शुनाशुन रसन स्वरूप कडं जे. .... .... ६५० २३ उत्कृष्ट तथा जघन्य रसबंधना खामी देखाड्या डे. .... २४ जघन्य, अजघन्य, उत्कृष्ट श्रने अनुत्कृष्ट ए चार प्रकारना रसबंधने विषे सायादि चार नाग विचारीने रसबंधनो अधिकार पूर्ण कस्यो . .... २५ प्रदेशबंध कहेतो थको प्रथम औदारिकादिक वर्गणानुं स्वरूप कडं जे. .... ६७० २६ जेवां कर्मदल जीव ग्रहण करे ते कह्यां बे, तथा ते कर्मदलगें अवगाहनादेत्र कडं बे तथा मूल पाठ कर्मनां दलनी नागविजजना कहीने पनी उत्तर प्रकृतिनां दलनी नागविनजना कही बे. कर्मना प्रदेश निर्जराववाने अर्थे सम्यक्त्वादि अगीश्रार अर्थे गुणश्रेणी कही . ६७७ २७ चौद गुणगणांनो अंतरकाल कह्यो . .... .... ६ए? .... ६७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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