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________________ २९६ लघुदेवसमासप्रकरण. ॥ हवे एक गाथाए करी नदीनो विस्तार तथा ठंडपणुं कहे . ॥ धुरि कुंम ज्वार समा॥पऊते दस गुणाय पिहुलत्ते ॥ सबब महनईॐ॥ विबर परमाउँनागुंडा ॥ ५॥ अर्थ- सर्व नदी जे जे, ते धुरि के० पहेला नीकलतां कुंवारसमा के कुंडनाहार सरखो जेमनो विस्तार दे एवी. अने पळते के बेडे एटले अंतने विषे प्रथमना विस्तारथी दसगुणायपिहुलत्ते के दशगुणी विस्तारपणे . ते केम? तो के-जरत तथा ऐरवतनी चार नदी बे, ते प्रथम सवाल योजन विस्तार , तेने दशगुणु करतां साढीबास योजन थाय.तो बेडे एटले समुज्माहे जले तेवारे साढीबासठ योजन थाय; तथा बत्रीश विजयनी नदी चोस .तेहनो पण एज आदिशंतनो विस्तार . तेहना जे चोस कुंड बे, ते बाहेरना कुंमसरखा बे; तेमाटे सरखो विस्तार कह्यो. वली हेमवंत तथा एरण्यवंतनी चार नदी, अने विजयनी बार अंतरनदी; एवं सोल नदीनो श्रादिविस्तार साढाबार योजन . तेने दशगुणो करतां एकसो पचीश योजन थाय; तो बेड़े एकसो पचीश योजननो विस्तार जाणवो. वली हरिवर्ष तथा रम्यक्षेत्रमांहे जे चार नदी ले तेहनो विस्तार पचीश योजन धुरे ले. तेने दशगुणुं करीएं तो बसें पचाश थाय; तो ते चार नदी ले ते अंतने विष बसें पचाश योजन विस्तारपणे बे. श्रने विदेहक्षेत्रे जे बे नदी बे, तेहनो प्रथम विस्तार, पचाश योजननो बे, ते दशगुणुं करतां पांचसे योजन थाय; तो बेडे पांचसे योजन तेनदी पहोली जाणवी. सबब केसघले जे महन के महानदी एटले मोटी नदी , ते विबर पलासनायुमा के० विस्ता. रथी पचासमे नागे उंडी जे. जेम गंगानदीनो आदि विस्तार सवा उ योजन , तेने पचाशे जाग देतां योजननो आठमो जाग श्रावे, तो प्रथम नीकलतां योजनने आपमे जागे उमी , अने बेडे साढी बासठ योजन विस्तार बे, तेने पचाशे नाग देतां सवा योजन श्रावे, तेमाटे लेने सवा योजन जमी नदी जाणवी. एम समस्त नदी बे. ए नरत तथा ऐरवत क्षेत्रनी नदीनी गती कही. ॥२७॥ ॥हवे पांच क्षेत्रनी नदीनी गति कहे बे. ॥ - पण खित्त महनई ॥ सदार दिसि दह विसु गिरि अ६॥ गंतूण सजिग्नीहिं । नियनिय कुंडेसु निवडंति ॥ ॥ ५ ॥ अर्थ- पण खित्तमहन के पांच क्षेत्रनी जे महानदी ले ते सदारदिसिदहविसुखगिरिश्रद्धं के पोतपोताना बारणानी दिशि जहनो जे विस्तार ,ते काढतांजे पर्वतना विस्तारनुं अर्ड थाय तेटला योजन नदी पर्वतना शिखर उपर वहे. ते केम? तो के-हेमवंत अने शिखरीनो विस्तार एक सहस्र बावन्न योजन अने बार कला . तेमाहेथी प्रहनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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