SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. जे विस्तार , ते प्रमाणे सवा ब योजन पहोलपणे गिरिसिहरे के हिमवंत तथा शिखरी पर्वतना शिखरथी वह के वहे . एटले उतरे बे. इतिगाथार्थ. ॥॥४॥ ॥हवे नदीनी गति बे गाथाए करी कहे .॥ पंचसय गंतु नियगा ॥ वत्तणकूडान बदिमुदंवलइ ॥ पण सय तेवीसेहिं । सादियतिकवादिसिदरा ॥४ए । अर्थ- पूर्वोक्त जे चार नदी , ते अहना बारणाथी पंचसय के पांचसे योजन सुधी पर्वतना शिखर उपर बारणां सन्मुख पूर्व पश्चिमदिशिएं गंतु के जश्ने पनी नियगावत्तणकूडान के निजकावर्तन कूटथी एटले पोतपोताना वर्त्तन कूटथी बहिमुहं के बाहेरना जरत अने ऐरवत क्षेत्रने सन्मुख वल के वले. ते आवी रीते जे गंगानदी ते पहना बारणाथी पांचसे योजन सुधी पर्वत उपरे बारणासामी जाय, त्यां गंगावर्त ए नामे पर्वतनुं जे कूट ते थकी बाहेरनुं जे नरतत्र बे तेने सन्मुख वले. ए रीते सिंधूनदी पण सिंधू आवर्तन कूटथी जरतदिशि वले, तथा रक्तानदी पांचसे योजन बारणा सन्मुख जश्ने पठी रक्तावर्तन कूटथी ऐरवतदिशि वले, एम रक्तवती नदी रक्तवत्यावर्तन कूटथी ऐरवत दिशि वले; तो ए नदी जरत तथा ऐरवत सामी वले, तेवारे पर्वतना मध्यनागथी बाहेर श्रावतां पर्वत उपर केटला योजन चाले? ते कहे . पणसयतेवीसेहिं के पांचवें त्रेवीश योजन अने साहियतिकलाहिं के साधिक एटले काफेरीत्रण कला त्यहांलगे पर्वत उपर चाले. ते केम ? सवा ब.योजन नदीनुं मुख ते, पर्वतनो जे विस्तार एक सहस्त्र अने बावन योजन, अने कला बार-तेमांहेथी काढीएं, तेवारे एक सहस्र श्रने तालीश योजन रहे. अने उपरना एक कोसनी पोणी पांचकला ते उपरनी बार कला मांदेथी काढीएं, तेवारे सवासात कला रहे. तेनुं श्र पांचसें त्रेवीश योजन अने शाढी 'त्रणकला जाफेरी लाने त्यहांलगी पर्वतना शिखर उपर नदी वहे. ॥ ४ ॥ निवड मगरमुदोवम ॥ वयरामय जिनिमयादि वयरतले ॥ नियगे निवाय कुंडे ॥ मुत्तावलि समप्पवाहेण ॥ ५ ॥ अर्थ- शिखरना बेडाथी मगरमुहोवम के मगरमचना मुखने उपमाये तेने आकारे, तथा वयरामय के वज्र रत्नमय एवी जे जिनियाहि के जीनी एनो जीन सरखो आकार , माटे जीनी कहीएं-परनाल ते मध्ये थश्ने वयरतले के वनमय ले तल जेहने विषे, एहवो जे नियगे निवायकुंके के नदीना पोतपोताने नामे जे निपात कुंड, एटले आप आपणे नामे जे निपातकुंड, तेने विषे मुत्तावली समप्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy