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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. २१ सन्मुख दारतिगंपि के० ए त्रण हार बे, ते बारणां पण सदिसिदहमाणा के खस्वदिशिजहना मानथी, असीश्नागपमाणं के एंशीमे नाग प्रमाणे बे. ते केम ? तो के-बहनो जे विस्तार पांचसे योजन पूर्व श्रने पश्चिम दिशिएं डे ते एंसीमे जागे वहेंचीएं तेवारे सवा उ योजन श्रावे; तेमाटे पूर्व अने पश्चिमनां बारणां प्रहनेविषे सवा उ योजन पहोला बे. अने मेरुसन्मुख हजार योजन अह ले ते एंसी जागे वहेंचीएं तेवारे साढावार योजन जागे श्रावे, तेमाटे मेरुसन्मुख सहना बारणांसाढाबार योजन पहोलां के एम जाणवू. वली ते हार केवां ले ?-सतोरणं के तोरणसहित . वली केवां डे ?-निग्गायनश्यं के नीकली नदी जे बारणांथी, एवां बे. ॥४६॥ जामुत्तर दारगं सेसेसु ददेसु ताण मेरुमुदा ॥ सदि सि ददा सिय नागा ॥ तयद्ध माणा य बाहिरिया ॥४॥ अर्थ- सेसेसु के शेष बीजा चार अहनेविषे जामुत्तर के दक्षिण अने उत्तर दिशाए दारगं के बेबे बारणां जे. ताण के तेमना मध्ये जे मेरुमुहा के मेरु सामां बारणां डे ते बारणां सदिसिददासियजागा के खदिशिजहना एंसीमे जागे . जेम महापद्म तथा महापुंगरीक ए बे अह मेरुदिशि सन्मुख बे सहस्त्र योजन , तेमना लांबपणाने एंसीनागे वहेंचतां पचीश योजन श्रावे, तो जे मेरु सन्मुख बारj बे, ते पचीश योजन- जे. अने बाहिरिया के बाहेरनां दक्षिण तथा उत्तर सन्मुख जे बारणां डे ते तयछमाणाय के मांहेला मेरुसन्मुख बारणाथी अमाने एटले साढाबार योजन प्रमाणे बे. वली ए रीते तिगिति तथा केशरी जद मेरुदिशि लांबा चार हजार योजन , ते एंसी नागे वहेंचतां पचाश योजन प्रमाणे मेरु सन्मुखनुं बारणुं बे, अने दक्षिण तथा उत्तरनां जे बारणांबे, ते मांहेला बारणाथी अर्ड एटले पचीश योजन प्रमाणनां बे. पण एटवं विशेष बे के ते सर्व प्रहनां बारणां जे , ते तोरण तथा नदीएं सहित डे एम जाणवू. ॥ ४ ॥ ॥ हवे ते बारणांथी जे नदी नीकली ले तेहनां नाम कहे . ॥ गंगा सिंधूरत्ता ॥रत्तवई बादिरं नइचनकं ॥ बदि दह पुवा वरदा, र विबरं वद गिरि सिहरे ॥४॥ अर्थ- गंगासिंधू के जरत देत्रनेविषे गंगानदी तथा सिंधूनदी ; श्रने ऐरवत क्षेत्रनेविषे रत्तारत्तवई के० रक्तानदी तथा रक्तवती नदी बे. ए बाहिरं के बाहेर रहेली जे नश्चक्कं के चार नदी ले ते बहिदह के बाहेरना जे पद्माह तथा पुंडरीकनामे जे अह बे, तेमांहेथी पुवावरदारविबरं के पूर्वपश्चिमनां जे घार , तेनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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