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________________ १५३ लघुदेवसमासप्रकरण. आहेण के मोतीनी तूटेली सेर तेने सदृश प्रवाहे करी अविजिन्न धाराए करी निवडर के पडे. एटले गंगानदी ते गंगानिपात कुंमने विषे पडे बे, अने सिंधुनदी सिंधूनिपात कुंडने विषे पडे बे. एम नदीने नामे निपातकुंड जाणवा. ॥ ५० ॥ ॥ हवे जीनी वखाणे .॥ दददार विबरा ॥ विबर परमास नाग जड्डा ॥ जड्डत्ता चनगुण ॥ दीदा सव जिन्नी ॥५१॥ अर्थ- अहनां बारणानो विस्तार सवा ब योजन बे; तेम नदीप्रवाहमांहे जीजीनो विस्तार पण सवा न योजन बे. तेमाटे सरखो विस्तार . अने दहदार विराजे के अहनां बारणानो जे पहोलपणे विस्तार ते विबर के विस्तारना पलासजागजड्डा के० पचाशमे जागे जीनी जाडी बे. अने ते जड्डत्ता के जाडपणाथी चगुण के चोगुणी सत्वजिनी के सर्व जीनी दीहा के दीर्घ एटले लांबी जे. एम सर्व अहोनी जीनीनुं प्रमाण जाणवू. जेम बाहेरना बे पर्वतने विषे सवा उ योजन जीजी पहोली बे, अने मध्यना बे पर्वतनी जिजी पचीश योजन मांदेली दिशिनी जित्नी पहोली बे. अने बाहेरनी दिशिनी जीनी साढाबार योजन प्रमाणे बे, अने अन्यंतर गिरीनी जीजी महाविदेह देत्रमांहेली पचाश योजन प्रमाणे . अने बाहेरनी जे जीनी डे ते पचीश योजन प्रमाण पहोली बे. ए सर्व जीजीउनु जाडपणुं बे; ते पोतपोताना विस्तारने पचाशमे नागे जाडी बे. अने जाडपणाथी चोगणुं लांबपणुं बे. ॥५१॥ ॥ हवे ते कुंड वच्चे जे छीप तेनुं प्रमाण कहे .॥ कुंडंतो अडजोयण ॥ पिहलो जलनवरि कोस उग मुच्चो ॥ वेश् जु नश् देवी ॥ दीवो दददेवि सम लवणो ॥५॥ अर्थ-कुंडतो के कुंडवच्चे श्रमजोयण के आठ योजन पिहुलो के. पोहलो पाणी बे.अने जलोवरि के० ते पाणी उपर कोसफुगमुच्चो के बे कोस ऊंचो, अने वेश्जु के० वेदिकायुक्त एटले वेदिकाए सहित एवो जे नश्देवीदीवो के नदीनी देवीने वसवानो छीप; पण ते हीप केवो ? दहदेविसमजवणो के० प्रहनी जे श्री, लक्ष्मी प्रमुख देवी तेहनां सरखां ने जवन जे छीपनेविषे एवो बे.. ॥ ५५ ॥ ॥ हवे कुंमोनुं प्रमाण कहे . ॥ जोयण सहि पित्ता॥ सवाय बप्पिदुख वेइति ज्वारा ॥ एए दसुंड कुंडा ॥ एवं अन्नेवि नवरंते ॥ ५३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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