________________
१७
लघुक्षेत्रसमासप्रकरण. ॥ हवे छीप समुसंबंधी विस्तारनुं प्रमाण एक गाथाए करी कहे जे. ॥
जंबूद्दीव पमाणं ॥गुलजोयण लक वट्ट विस्कंनो ॥
लवणाई यासेसा ॥ वलयाना उगुण उगुणाय ॥ १२ ॥ अर्थ- जंबुद्दीव के प्रथम जंबुद्धीप बे, ते पमाणंगुल के प्रमाणांगुले करी लरक जोयण के० लाख योजननो वट्ट के वर्तुल एटले गोलाकारे विस्वं नो के पहोलो . य के० वली सेसा के शेष एटले बाकी रह्या जे लवणाश्या के लवणादि समुन तथा छीप ते उगुणगुणा के० एक बीजा करतां बमणो बमणो जेमनो विस्तार बे, एवा . ॥ १२ ॥
॥ श्रथ जगतीनुं स्वरूप ब गाथाए करी कहे जे. ॥ वयरामशदि निय निय ॥ दीवोददि मसिगणिय मूलाहिं ॥ अहुचाहिं बारस ॥ चनमूले उवरि रुंदाहिं ॥ १३ ॥ विबार उग विसेसो ॥ उस्सेहि विनत्तु खनच दोश् ॥श्य चूलागिरि कूडा,
तुल्ल विस्कंन करणादिं ॥ १४ ॥ गाउजुगुच्चार तय नाग रुंदाइ पनमवेईए ॥ देसूण जोयणवर ॥ वणाहि परिमंडिय सिराहिं ॥ १५ ॥ वेइसमेण महया ॥ गवरक कडएण संपरित्तादिं ॥ अहारसूण चउन्न, त्त परिदिदारं तरादिंच ॥ १६ ॥ अहुच चसविबर ॥ उपास सकोस कुट्टदाराहिं ॥ पुवाइ महडियदे, वदार विजयाइ नामादिं ॥ १७ ॥ नाणामणि मय देदलि ॥ कवाड परिघाइ दारसोदादिं ॥ जगदं ते सव्वे ॥दीवोदहिणो परिस्कित्ता ॥ १७ ॥ अर्थ-ए पूर्वोक्त सर्व छीपसमुज ते श्रागल कहीशुं एवी जगतीए करी विंटेलां ३. ए अर्थनो संबंध अढारमी गाथाए जाणवो. ते जगती केवी बे ? ते कहे जे.वया रामहिं के वज़मय बे. अने नियनिय के पोतपोताना दीवोदहि के छीप समुपनप्रमाण-तेमना मसि के० मध्यने विषे गणिय के गएयु मूलाहिं के मूल जेमनुं. एटले बार योजन प्रमाण जगतिनुं मूल विस्तारे बे. ते लाख योजनना जंबहीपमांहेर्नु . ए प्रमाणे सर्व ठेकाणे जाणवु, वली जगति केवीयो बे ? श्रह के श्राप योजननी उच्च के जंची जे. वली केवीयो के ? बारस के बार योजन बे, मूले के मूलने विषे रुंदाहिं एटले विस्तार जेमनो अने चन के चार योजन उवरि के उपर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org