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लघुदेवसमासप्रकरण. असंख्याता . तथा एकेका नाम, जे बाहुल्यपणुं एटले त्रिप्रत्यावतारपणुं बे, ते जाव के० यावत् एटले ज्यांसुधी य के वली बेला सुरावनासुत्ति के सुरावनास हीप तथा सुरावनास समुज, ते त्रिप्रत्यावतारे सुरवरावनास हीप अने सुरवरावजास समुज बे; त्यांसुधीज बे. परंतु श्रागल नथी. ॥ ७॥
तत्तो देवे नागे ॥ जके नए सयंजुरमणे य ॥
एए पंच वि दीवा ॥ इगेगनामा मुणेयवा ॥ ए॥ अर्थ-तत्तो के ततः त्रिप्रत्यावतार गणतां बेबो जे सुरवरावनास हीप, ते पड़ी देवे के देव दीप बे, ते पड़ी नागे के नाग झीप तथा जके के यद छीप, लूए के० नूत हीप. य के वली सयंजुरमणे के० स्वयंनूरमण हीप एए के ए पंचवि के० पांचे पण दीवा के छीपो . तथा पांच समुखो . ते इगेगनामा के जेमनुं एकेक नाम ले. एवा मुणेयव्वा के जाणवा योग्य . ॥ ५ ॥
॥ हवे केटलाएक समुनां नामो कहे . ॥ पढमे लवणो बीये ॥ कालोददि सेसएसु सवेसु ॥
दीवसम नामया जा॥ सयंजुरमणोदही चरमो॥१०॥ अर्थ-पढमे के प्रथम जंबुद्धीपने विषे लवणो के लवणोदधि . बीए के बीजो जे धातकीखंड द्वीप तेने विषे कालोदहि के कालोदधि नामे समुन . सेसएसु के बाकी रह्या जे सव्वेसु के सर्व समुप ते दीवसम नामया के० डीप सरखां जेमनां नाम के एवा ने. यथा पुष्करवर छीप, त्यां पुष्करवर समुज इत्यादि. जा के यावत् चरमो के बेहो सयंजुरमणोदहि के स्वयंजुरमण समुज त्यांसुधी जाणवा. १०
॥ हवे एक गाथाए करी समुनोना पाणीनो रस कहे . ॥ बीउ त चरमो॥ उदगरसा पढम चनथ पंचमगा ॥
बहोवि सनामरसा ॥इस्कुरसा सेस जलनिहिणो ॥११॥ अर्थ-बी के बीजो कालोदधि, त के त्रीजो पुष्करवर समुज, चरमो के० बेहो वयंजुरमण समुज, ए त्रण समुख उदगरसा के पाणी सदृश रस जेमनो एवा
. पढम के पहेलो लवणसमुख, चउथ के चोथो वारुणीवर समुज, पंचमगा केव पांचमो खीरवर समुज, होवि के हो घृतवरसमुज पण-ए चार समुजसनामरसा के पोताना नाम सदृश जेमनो रस बे एवा जे. अने इकुरसा के तु जे शेलड़ी ते सदृश डे रस.जेमनो एवा सेसजल निहिणो के० शेष एटले बाकीना जलनिधि एटले समुनो . ॥११॥
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