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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. २०५ ए राशीने एहज ांकसाथे गुणीएं तेवारे २५ए४,७३३७५३, ६५४०५६ए, ६०००००० पच्चीसें ने चोराणुं कोमाकोमी कोमी, तथा सात लाख तेत्रीश हजार श्रासें त्रेपन एटली कोमाकोडी अने पांसठ लाख चालीश हजार पांचसें अगणोत्तर कोकी, तेना उपर साठ लाख, एटला रोमखंम चनरंस प्रतर योजनमां थाय. पढ़ी जेवारे ए योजननु घन करीएं तेवारे ए श्रांक एहज आंकसाथे गुणीएं तेवारे ४१७४७६३,२५७१५७, ४२४५,४४२५६००,0000000 एटले एकतालीश कोटि कोत्तेर लाख चार हजार सातसें त्रेस कोडाकोडी कोमाकोडी, तथा पचीश लाख अहाशी हजार एकसो ने अहावन कोमाकोडी कोडी, तथा बेतालीश लाख सित्तोत्तर हजार आठसे पिस्तालीश एटली कोमाकोडी, अने चुमालीश लाख पचीश हजार बसें एटली कामी, ए चउरंसघन योजन करीएं, तो तेमां एटला रोमखंग थाय. हवे चजरंसघन पल्यनुं जेवारे वाटवं पव्य करीएं तो ए चनरंस घनयोजननो श्रांक जंगणीश बांके गुणीएं त्यारे पएशए०५०१९१७५०१०११ए०६३४६४००0000000 एटला श्रांक थाय. वली ए - कने चोवीश नागे वेहेंचतां ३३०७६२१०४,२४६५६२५,५२१६०,ए७५३६००,0000000 तेत्रीश कोमी सात लाख बासठ हजार एकसो ने चार कोमाकोमीकोडाकोमी, चोवीशलाख पांसठहजार बसें ने पचीश एटली कोडाकोमी कोडी, तथा बेतालीश लाख उंगणीश हजार नवसे ने साठ एटली कोमाकोडी, तथा सत्ताणु लाख त्रेपन हजार ने बसें कोडी एटली वाटला घनयोजन पट्योपमनेविषे सर्व स्थूल रोमखमनी संख्या होय. तेमाटे ए संख्याता कह्या. हवे असंख्याता करवामाटे कहे . ते के ते पूर्वोक्त रोमखंड तेना शकिक के० एकेका खंमना असंखे के असंख्याता खंम मनसाथे क पिएं; तेवारे असंख्याता सूदमरोमाणु थाय. ॥४॥ ॥ हवे असंख्याता सूक्ष्मरोमखंडने पक्ष्योपमपणुं कहे .॥ सुहमाणु निचियनस्से ॥ हंगुल चनकोस पल्लि घणवढे ॥ पश्समय मणुग्गह, निध्यिमि नछार पल्लि जति ॥ ५॥ - अर्थ- सुहुम के सूक्ष्म, अणु के परमाणु-तेणे करी निचिय के० नरेलो एवोउस्सेहंगुल के उत्सेधांगुलने प्रमाणे करी चउकोस के चार कोशनो पति के पथ्योपम ते घण के निविड वट्टे के वर्तुल एटले गोलाकार एवो जे पढ्योपम तेने पश्समय के प्रतिसमये एकेक रोमाणुने अनुग्रह के० ग्रहण करीने निहियंमि के निष्टांगत ते निर्लेप करे ते एटले खाली करे बते उछारपलिजत्ति के एक उकार पट्योपम थाय. इति उच्यते. एने पहनी उपमाए कह्यो माटे पस्योपम कहीएं. अहींयां पख्योपम ब प्रकारना बे. एक उकारसूक्ष्म, बीजं उझारबादर, त्रीजुं असासूक्ष्म, चोथु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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