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________________ २७४ लघुदेवसमासप्रकरण. ॥हवे स्थूल उद्धार पक्ष्योपम विचार विशेष संप्रदायोक्त प्रथम स्थूलाणुनी कल्पना कहे ॥ कुरु सग दिणावि अंगुल ॥ रोमे सगवार विहिय अमखं डे ॥ बावन्नसयं सहसा ॥ सगनवई वीस लरकाणू ॥ ३ ॥ अर्थ- कुरु के देवकुरु श्रने उत्तरकुरु-तेनो उपन्यो जे सगदिणावि के सात दिवसनो घेटो तेहनो अंगुल के उत्सेधांगुल प्रमाण जे रोम, तेहना सगवार के सातवार अडखमे के श्राप आउ खंड करीएं, तेवारे वीसलरकाणू के वीश लाख अणु, सगनवसहस्स के सत्ताणुहजार, सयं के एकसो अने उपर बावन्न के बावन-एटला रोमना खेम थाय. ते आवीरीते. प्रथम आठ, बीजीवार पाउने श्राठे गुणतां चोस थाय, त्रीजीवार चोसठने आठे गुणतां पांचसें ने बार थाय, चोथीवार पांचसें बारने श्राठे गुणतां चार हजार ने बर्नु थाय, पांचमीवारे चार हजार बनने आठे गुणतां बत्रीश हजार सातसे ने श्रमश थाय, बीवारे तेने श्रावे गुणतां बे लाख बासठ हजार एकसो ने चुमालीश थाय, सातमीवार ए आंकने श्राठे गुणतां वीश लाख सताणु हजार एकसो ने बावन एटली संख्या थाय. ए प्रमाणे पूर्वे जे रोमना खंड कह्या, तेमनुं जे पट्य-तेने विषे संख्यातपणुं देखाड्यु.॥३॥ ॥ हवे असंख्यातपणुं देखाडवाने माटे सूक्ष्म खेमनी कल्पना कहे .॥ ते थूला पल्ले विहु ॥ संखिजाचेवहुंति सवेवि ॥ ते शकिक असंखे ॥ सुहमे खंडे पकप्पेठ ॥४॥ अर्थ- ते शूल के ते पूर्वे कह्या जे थूल एटले महोटा रोमना खंग-तेणे करी जेनुं चार कोश प्रमाण बे, एवो समवृत्त जे पझेविहु के कुर्च ते नस्योथको-तेनेविषेसवेवि के० सर्व पण चेव के निश्चये करीने संखिजा के० संख्याताज हुँति के होय. ते युक्ति कहे .जेवारे शुचि गुणीएं तेवारे उत्सेधांगुल प्रमाण रोमना खंग सर्व मलीने वीश लाख सत्ताणु हजार एकसो ने बावन थाय. अने चोवीश उत्सेधांगुले एक हाथ थाय. तेमाटे एने चोवीश गुणा करिएं तेवारे ५०३३१६४७ पांच कोटी त्रण लाख एकत्रीश हजार बसें ने अडतालीश थाय. अने चार हाथे एक धनुष्य थाय, तेमाटे ए राशीने वली चार गुणी करतां २०१३२६एएए वीश कोटी तेर लाख बबीश हजार पाचसें ने बाएं थाय. तेवा बे हजार धनुष्य एक कोशमां थाय ने, माटे एने बे सहस्र साथे गुणतां ४,०२,६५,३१,४००० एटला रोम खंम थाय. ते वली चार कोशे एक योजन थाय, तेमाटे ए श्रांकने चारनीसाथे गुणतां १,६१०,६१,२७३,६००० एटले एक लाख एकसठ हजार अने एकसठ एटली कोटि अने सत्तावीश लाख बत्रीश हजार जपर एटला रोमखम शुचिगुणतां थाय. वली एक योजन प्रतरनी वांगए समचरंस करत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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