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________________ संग्रहणीसूत्र. ॥ हवे सर्व जीवने पर्याप्ति कहे . ॥ आदार सरीरिंदिय ॥ पजत्ती प्राणपाण नासमणे ॥ चन पंच पंच प्पिय ॥ ग विगला सन्नि सन्नीणं ॥ ३१२ ॥ अर्थ- श्राहार प्रमुखना पुनल ग्रहण परिणमनहेतु जे श्रात्मानी शक्ति विशेष तेने पर्याप्ति कहिएं. त्यां प्रथम आहार पर्याप्ति,बीजी शरीर पर्याप्ति, त्रीजी इंजिय पर्याप्ति, शहां एत्रणनी वचाले जे पर्याप्ति शब्द कह्यो तेनो हेतु एम डे के जे को जीव अपर्याप्तो मरण पामे, तोपण ए त्रण पर्याप्ति पूरण करी मरण पामे, पण ए त्रण पर्याप्ति पुरी कल्या विना को मरण पामेज नही. तेमाटे अहींयां इंजियपदनी साथे पर्याप्ति शब्द जोड्यो बे. चोथी श्वासोश्वास पर्याप्ति, पांचमी नाषा पर्याप्ति,बही मनःपर्याप्ति, ए समस्त पर्याप्ति उपजवाने पहेले समये जे जीवने जेटली पर्याप्ति करवानी, ते जीव ते. टली पर्याति समकाले करवा मांडे,पढी अनुक्रमे पहेली बाहार पर्याप्ति, ते पड़ी शरीर पर्याप्ति, एम सर्व पर्याप्ति यथायोग्यपणे करे. त्यां श्राहार पर्याप्ति प्रथम समयेज करे, अने बीजी समस्त पर्याप्ति ते प्रत्येक असंख्यात समय प्रमाण अंतर मुहर्ते करे, वैक्रिय शरीर अने थाहारक शरीरवाला जीवने, एक शरीर पर्याप्ति अंतरमुहत्तै होय, अने बीजी समस्त पर्याप्ति एकेके समये होय. एवं सर्व मली अंतरमुहूर्त प्रमाण पर्याप्तिकाल जाणवो. अहींयां एकेंडीने चार पर्याप्ति होय, अने विकलेंडीने नाषा सहित पांच पर्याप्ति होय, तथा असंज्ञी संमूर्बिम पंचेंनी तिर्यंच तथा मनुष्यने एक मन विना पांच पर्याप्ति होय, त्यां संमूर्बिम मत्स जे समुअमाहे श्राहार निमित्ते मुख ऊघाडे , ते थाहार संज्ञा जाणवी, पण मन समजवू नही. केमके, असंझीने पांच पर्याप्ति कही बे, परंतु संमूर्बिम मनुष्यने त्रण पर्याप्ति संजवे. श्रीपन्नवणामां एम कडं . यतः "सवाहिं पत्तगा" ए वचन थकी कदाचित् चार पर्याप्ति संनवे, परंतु नाषा पर्याप्ति तो सर्वथा संचवेज नही. वली संझी पंचेंडी गर्जज तिर्यंच तथा मनुष्य तथा देव अने नारकीने मन सहित उ पर्याप्ति जाणवी. जे पोताने योग्य पर्याप्ति पूरण कस्याविना अपर्याप्तो मरण पामे, ते आद्यनी त्रण पर्याप्ति पुरी करी परजवायुनुं बंधकरी अंतर मुहूर्त श्रबाधाकाल जीवीने मरण पामे. ॥ ३१५ ॥ ॥ हवे पर्याप्तिनुं लक्षण कहे जे. ॥ आदारसरिदिय ॥ सास वक मणोनिनिवत्ती दोइज दलियाऊ ॥ करणं पश्सान पजाती ॥३१३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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