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संग्रहणीसूत्र.
२५ए स्थिरलेश्या होय. अने तिनि सेसाणं के शेष तेउकाय, वाजकाय, सूक्ष्म पृथ्वीकाय, सूक्ष्म अप्पकाय, साधारण अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय, अपर्याप्त बादर अप्पकाय, अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिकाय, बेइंजी, तेंडी, चउरेंनी अने संमृर्बिम पंचेंडी तिर्यंच, तथा संमूर्बिम पंचेंजी मनुष्य, एटलाने कृप्त, नील अने कापोत ए त्रण लेश्या होय. अने पृथ्वी, अप तथा पर्याप्त बादर वनस्पतिमाहे देवताना उपजवा थकी केटलोएक काल तेजोलेश्या संजवे, पर्याप्तावस्थाएं तेजोलेश्या केम संजवे? ते उपर हेतु कहे जे. जोसाए मरई, “ तलेसाए उववऊति” एटले जे वेश्याथकां मरण पामे तेज वेश्या थकां उपजे. ॥ २३ ॥ अहींयां क्षमाश्रमणकृत गाथा कहे .॥
अंत मुहत्तंमि गए ॥ अंत मुहत्तंमि सेस ए चेव ॥लेसा
दि परिणयाहिं ॥ जीवा वच्चंति परलोयं ॥ ४ ॥ अर्थ-मनुष्य तथा तिर्यंच ते परजवनी लेश्या श्राव्या पली अंतर्मुहूर्ते मरण पामे. एटले लेश्यानुं अंतर्मुहर्त गया पली मरण पामे. श्रने देवता तथा नारकी पोतानी मूलगी लेश्यानुं मुहूर्त थाकतुं रहे तेवारे मरण पामीने परनवे जाय. त्यां उपन्या पड़ी ते मूलगी लेश्यानुं अंतर्मुहर्त जोगवे. तेमां पर्याप्तिनुं अंतर्मुहर्त्त न्हानुं जाणवू, अने वेश्यानुं अंतर्मुहूर्त महोटुं जाणवू. तेमाटे पर्याप्तावस्थाए पण परजवनी तेजोलेश्या संचवे. अहींयां अंतर्मुहूर्त्तना असंख्याता नेद . ॥ २ ॥
तिरि नर आगामि नवे ॥ लेस्साए अगए सुरानिरया ॥
पुबनव लेस्ससेसे ॥ अंत मुहुत्ते मरणमिति ॥ ५॥ .. अर्थ- तिथंच तथा नर के मनुष्य ते श्रागामिनवे के श्रागला जवनी लेश्याए के लेश्यानुं अंतर्मुहूर्त्त गया पनी मरण पामेः वली सुरा निरया के देव तथा नारकी ए पूर्वना नवनी लेश्यानुं अंतरर्मुहूर्त शेष थाकतुं रहे तेवारे मरण पामी परनवे उपजे, एतावता ए परमार्थ. जे तेजोलेश्यावंत देवता पृथ्वीकाय, अने अपकाय, तथा प्रत्येक वनस्पतिमाहे उपजता तेमने केटलोएक काल तेजोलेश्यानो सन्नाव होय. ॥ २५ ॥
॥ हवे मनुष्य, तिर्यंच संबंधी लेश्यानी स्थिति कहे . ॥ अंतमुहुत्तहि ॥ तिरिय नराणं दवंति लेस्सा ॥
चरिमानराण पुण नव ॥ वासूणा पुत्र कोडीवि॥२६॥ अर्थ- पृथ्वीकायादिक तिर्यंच अने नराणं के० संमूर्बिम तथा गर्नज मनुष्य एने जे जे लेश्या संनवे, ते ते लेश्याउँनी हि के स्थिति अंतमुहुत्त के अंतर्मुहर्त प्रमाण जाणवी. एतावता पृथ्वीकायमांदे जे लेश्या बे, ते जघन्यथी तथा उत्कृष्टथी अंतर्मु
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