________________
२६०
संग्रहणीसूत्र. हुर्त सुधी रही; ने वली संज्ञाए करी फरी जाय, अने वीजी लेश्या थाय. अंतर्मुहर्त उपरांत लेश्या रहे नही. एमज अप्पकाय प्रमुख तिर्यंचने तथा संमूबिम गर्नज मनुष्यने पण जाणवी. अने चरिमा के बेल्ली शुक्ललेश्या ते मनुष्यने उत्कृष्टी नवे वरसे ऊणी एक पूर्वकोडी वर्षसुधी रहे. ते केवी रीते रहे ? ते कहे . गर्नकालना नव महीना रहित आठ वर्षमांहे चारित्र न होय. तेमाटे कोश्क जीव नवमे वरसे चारित्र लेश केवलज्ञान पामे, तेवारपनी नवे वरसे ऊणी एक पूर्वकोडी वर्षपर्यंत जीवतो रहे: त्यांसुधी केवलीने एकज शुक्ललेश्या होय. अने बीजा मनुष्यने शुक्ललेश्या अंतर्मुहूर्त प्रमाण होय. एटले तिर्यंचने सविस्तरपणे गति अने आगति कही. ॥ ६ ॥
तिरियाणवि विश्पमुहं ॥ नणिय मसेसंपि संपई वुलं ॥
अनिहिय दारनहियं ॥चनग जीवाण सामन्नं ॥२ ॥ अर्थ-तिरियाणवि विपमुहं के० धुरथकी मामीने तिर्यंचनी स्थिति प्रमुख समस्त श्रा प्रतिहारसहित तिर्यंचनुं छार जणियं के कयु. अने संपश्वुद्धं के सांप्रत एटले हवे चारे गतिना घारमाहे केटलाएक बोल प्रथम कह्या, अने केटलाएक अधिक बोल डे ते पूर्वे कह्या नथी. माटे ते चारे गतिना जीवोने सामन्नं के० सामान्यपणे सरखा कहे . ॥॥
देवा असंख नर तिरि ॥ इसी पुंवेय गन नर तिरिया ॥
संखाउया तिवेया ॥ नपुंसगा नारया ईया ॥ २ ॥ अर्थ- देवता अने असंख के असंख्याता वर्षायुवाला युगलिया जे मनुष्य तथा तिर्यंच, तेमांहे पुरुष वेद श्रने स्त्री वेद ए बन्ने वेद होय. अने गननरतिरिया संखाउया के० संख्याता आयुष्यना धणी गर्नज मनुष्य, तथा गर्नज तिर्यंच- एमाहे पुरुष, स्त्री ने नपुंसक ए तिवेया केत्रण वेद होय. तथा नारयाश्या के० नारकी श्रादे देश्ने एकेंजी, बेंजी, तेंजी अने चउरेंडी तथा संमुर्बिम मनुष्य अने समूर्बिम तिर्यंच एटला बधा एकज नपुंसगा के नपुंसकवेदी जाणवा. ॥२॥ ॥ हवे पूर्वोक्त वैमानादिक जे कह्यां ने ते जे अंगुले मापीएं ते कहे . ॥
आयंगुलेण वतुं ॥ सरीर मुस्सेद अंगुलेण तहा ॥
नगपुढवि विमाणाईं॥मिणसु पमाणं गुलेणंतु॥श्नए॥ अर्थ-श्रांगुलना त्रण भेद ले. एक आत्मांगुल, बीजुं उत्सेझांगुल, अने त्रीजुं प्रमापांगुल. तेमां आत्मांगुले करी वढं के वस्तु जे धवलगृह, नूमिगृह, तहखाना, कूप, तलाव प्रमुखने मापीएं, जे काले जेटबुं शरीरप्रमाण होय, तेहने अनुसारे घर, हाट,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org