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________________ संग्रहणीसूत्र. १५७ के फरी फरी त्यां निगोदना निगोदमांहेज उपजे जे ने चवे . एटले निगोदमांहेज उपजे अने निगोदमांहेज मरण पामे . त्यांना त्यांज रहे . ॥१७॥ सबोवि किसल खलु ॥ जगाममाणो अणंत नणि ॥ सोचेव विवढंतो॥ दोश् परित्तो अणंतोवा ॥ २ ॥ अर्थ-सबोवि के समस्त प्रत्येक वनस्पतीकाय अथवा साधारण वनस्पतिकाय प्रथम ऊगतो किसलयरूप तेने खलु इति निश्चें अनंतकाय कहीएं सो के० तेहज किसलय चेव के निश्चे थकी वधतो वधतो अंतरमुहर्त पनी कोश्क परित्तो के प्र. त्येक शरीर होय. वा के अने कोश्क साधारण शरीर होय, जेवो कर्म बांध्यो होय जेवो बीज होय, तेवो शरीर नीपजे. ॥२७॥ ॥ हवे कया कर्मथी जीवने एकेंद्रीपणानी प्राप्ति थाय ते कहे . ॥ जया मोदोद तिवो ॥ अन्नाणंखुमदग्नयं ॥ पेलवं वेयणीयंतु ॥ तया एगिदिय तणं ॥जए॥ अर्थ-जया के जेवारे तिबो के तीव्र एटले अत्यंत मोहोदय विषयानिलाष मैथुन परिणाम होय, अथवा अत्यंत नैरव अज्ञानरूप महाजय जेणे करी सचेतन ते अचेतन थक्ष जाय. तथा पेलवं के० असार वेयणीयं के० असातावेदनी उदय थावी होय. तेवारे एवा परिणामे अथवा संज्ञाएं करी एकेंजीपणानुं कर्म बंधाय, तेथी जीव एकेंडी थाय, एटले तिर्यंचने उपपात विरहकाल, चवन विरहकाल, एक समय उपपात संख्या, एक समय चवन संख्या, ए चार द्वार कह्यां.॥ ए॥ ॥ हवे ए तिर्यंचमां कियो जीव जाय ते गति द्वार कहे . ॥ तिरिएसुजंति संखा ॥ तिरिनराजाउ कप्पदेवा ॥ पजत्तसंख गनय ॥ बायर जूदगपरित्तेसु ॥२०॥ तो सहसारंत सुरा ॥ निरया पडत्त संख गन्नेसु ॥ अर्थ-एकेंसी, बेंजी, तेंडी, चउरेंजी तथा संख्यातावर्षायुवाला पंचेंत्री तिर्यंच, अने संख्यातावर्षायुवाला मनुष्य, एटला स्थानकना जीव मरण पामीने एकेंजी, बेंजी, तेंडी, चउरेंजी ने पंचेंडी तिर्यंचमांहे उपजे. वली नुवनपती, व्यंतर अने ज्योतषी तथा जाऊकप्पदेवा के० यावत् सौधर्म अने ईशान ए बे कल्पविमानवासि देवता ए मरण पामीने पजात्तसंखगप्पय के० पर्याप्ता संख्यातायुवाला गर्नज तिर्यंचमांहें उपजे. वली बायरजूदग के पर्याता बादर, पृथ्वीकाय अने दग एटले अप्पकायमांहे पण उपजे. वली पर्याप्ता परित्तेसु के० प्रत्येक वनस्पतिमाहे पण उपजे ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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