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संग्रहणीसूत्र.
अहां एकेंद्री ते पृथ्वी, अप्प, ते अने वाउ ए चार सामान्यपणे प्रति समय संख्याता उपजे, छाने असंख्याता चवे; पण एक समय संख्याता उपजे नहीं, तेम संख्याता चवे पण नही; अवश्य असंख्याताज उपजे तथा चवे. अने वनस्पतिकायना वनस्पतिमांहेश्रीज यावीने अनंता उपजे, अने अनंता चवे. तथा पृथिव्यादिक परस्थानकथकी वनस्पतिमां घ्यावी उपजे तेवारे असंख्याता उपजे.
दवे अनंता उपजवानो हेतु कहे बे. जे कारण माटे एकेका निगोदथी असंख्यातमो जाग अनंता जीव प्रमाण नित्य सदा सर्वदा यांतराविना चवे ने उपजे. ए जावार्थ जे अनंत जीवात्मक एक सूक्ष्म अथवा बादर निगोद तेना असंख्याता जाग करिएं, तेवो एक जाग अनंत जीव प्रमाण सदा त्यांथी निकले, छाने वोज एक संख्यातमो जाग सदा ते स्थानके उपजे, ते जाग पण अनंत जीवात्मक . जावो. ए प्रकारे एकेक निगोदे प्रति समये अनंता जीव उपजे ने अनंता चवे. तो सर्व निगोदने विषे अनंता उपजता छाने चवता केम न पामिएं ? ॥ २७५ ॥
ea नगद शब्द अर्थ करे बे, जे अनंता जीवनुं एक साधारण श्रदारिक शरीर स्तिबुकाकार पाणीना पर्पेटा सरखो तेने निगोद कहिएं, ते अनंताजीव एकवारे एका श्वासोश्वास करे, एकता याहार करे, ते निगोद कहिएं. तेवा श्रसंख्याता निगोदना समुदायने गोलो कहिएं, तेवा गोला चउदराजमांहे असंख्याता बे. गोला संखिता ॥ असंख निग्गोय दवइ गोलो ॥ इक्किमि निगोए ॥ प्रांत जीवा मुणेयवा ॥ २७६ ॥
अर्थ- संसारमा असंख्याता गोला बे, ते असंख्याते निगोदे एक गोलो होय. ते एकेक निगोदे अनंता जीव जाणवा. ए निगोदिया जीवना बे नेद बे. एक संव्यवहारिया, बीजा संव्यवहारिया. तेमां जे अनादि निगोद थकी निकली पृथ्वीकाय प्रमुखमांहे उपजे, तेने संव्यवहारियो जीव कहीएं. कदाचित् ते जीव वली फरी पाठो निगोदमांहे जाय तोपण तेने संव्यवहारियोज कहिएं, अने जे जीव अनादि निगोद की निकल्याज नथी, अनादिकालथी सूक्ष्म निगोद तथा बादर निगोदमांहेज रहेबे, तेने असंव्यवहारिया कहिएं, तथा जेटला जीव मोके जाय तेटला जीव निगोदमांथी निकली पृथ्वीकायादिकने विषे यावी उपजे ए विशेषार्थ बे.
पिता जीवा ॥ जेहिं न पत्तो तसाइ परिणामो ॥ उप्पति चयंतिय ॥ पुणोवि तचैव तचैव ॥ २७७ ॥ अर्थ- अनंता जीव एवा बे के, जे जीवे त्रसादिक पर्याय पाम्युं नथी; जे पुणो वि
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