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________________ १५४ संग्रहणीसूत्र. अग्निकायनुं शरीर जाणवुं, तेथकी असंख्यातगणुं एक बादर अप्पकायनुं शरीर जावं, ते थकी पण असंख्यात गणुं एक बादर पृथ्वी कायनुं शरीर जाणवुं, ते थकी प असंख्यात गणुं एक बादर निगोदनुं शरीर जाणवुं. ए दशे मांदोमांदे असंख्यात गुणाधिक बे, परंतु एकेकुं शरीर अंगुलनुं असंख्यातमुं जाग जाएवं एम अनुक्रमे असंख्यातगणुं जावं. छाने प्रत्येक वनस्पतिनुं शरीर एक हजार योजन काकेरुं बे. ॥ २६ ॥ यां शिष्य प्रश्न करे बे के एटलां सर्व शरीर उत्सेांगुर्ले कह्यां, समुद्र तथा वह प्रमाणांले बे. तो हजार याजन ठंडा समुद्रमांहे पद्मनाल प्रमुख वनस्प तिनां शरीर केम घटे ? माटे अत्यंत दीर्घ होय. हवे ए प्रश्ननो उत्तर गुरु कड़े बे. उस्सेदं गुलजो ॥ सहस्समाणे जलासए नेयं ॥ तं वल्लि पम पमुदं ॥ अपरं पुढविरूवं तु ॥ २७० ॥ अर्थ - उत्सेधांगुले करी हजार याजन प्रमाण उंकुं जलासए के० जलाशय ते नेयं to जावं. त्यां रहेनारा जे वल्लि पम पमुहं के० कमल प्रमुख बे ते वनस्पतिकाय जावां तेनुं शरीर हजार योजन किंचित् अधिक जाणवुं उपरांत जे पद्मना कमल ते पुढविरूवंतु ० पृथ्वी कायरूप जाणवा. जे कारण माटे पद्मद्रह हजार योजन जंको बे, ए जावार्थ विशेषणवति ग्रंथ मांहे श्री जिननद्रगणी क्षमाश्रमणे विशेपणे वखायो बे ॥ २७० ॥ ॥ वे बेदिक विशेष नाम ग्रहणपूर्वक उत्कृष्टुं देहमान कहे . ॥ बारस जोयण संखो ॥ तिकोस गुम्मीय जोयणं नमरो ॥ मुग्मि चपय जुय ॥ गुरंग गाऊधणु जोया पहुंत्तं ॥ २७२ ॥ अर्थ- शंख प्रमुख बेंद्री जीवनुं बार योजननुं शरीर, गुम्मीय कन सिलाईया प्रमुख तेंडीनुं त्रण कोशनुं शरीर जमरा प्रमुख चरिंडीनुं एक योजननुं शरीर. संमूर्तिम चतुष्पद गाय प्रमुखनुं उत्कृष्टुं नव गाउनुं शरीर जावं. संमूर्बिम जुजपरिसर्प गोह नोलिया दिकनुं नव धनुष्यनुं शरीर जावं. संमूर्बिम ऊरपरिसर्प अजगरादिकनुं नव योजननुं शरीर जाणवुं ॥ २७ ॥ न चप्पय बग्गा ॥ उयाइ जुयगान गाउय पहुंत्तं ॥ जोया सहस्स मुरगा ॥ महा ऊनए विय सहस्सं ॥ २७२ ॥ अर्थ- गर्भज चतुष्पद हस्ति प्रमुखनुं व कोशनुं शरीर जाणवुं. गर्जज जुजपरिसर्प गोह प्रमुख नव गाऊनुं शरीर जावं. गर्नज उरगा के० उरपरीसर्पनुं एक हजार योजननुं शरीर जावं. अने महाउनएवि के० गर्जज ने संमूर्तिम ए उजय एटले बने जातना मत्सोनुं शरीर एक हजार योजन प्रमाण जाणवुं ॥ २७२ ॥ Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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