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________________ संग्रहणीसूत्र. अर्थ- एसापुढवाईणं के ए पूर्वे पृथ्व्यादिकना आयुष्यरूप जवस्थिति कही. हवे वली एज पृथ्व्यादिकनी काय स्थिति एटले जे पुनः पुनः मरण पामीने तेज कायमां उपजे तेने कायस्थिति कहींएं, ते कायस्थिति कहे . चउएगिदिसु के वनस्पति टालीने पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय अने वायुकाय, ए चार एकेंजीमा प्रत्येके उत्कृष्टी काय स्थिति असंख्याति उत्सपिणी अवसप्पिणी प्रमाण नेया के जाणवी. अंहीयां ए नाव, जे पृथ्वीकायनो जीव मरण पामि पामिने फरी तेज कायमां उपजे, पण पोतानी कायने मूके नही, तो असंख्याति उप्पिणी श्रवसप्पिणी सुधी रहे. एमज अप्पकाय, तेउकाय अने वाउकाय पण जाणवा. दश कोडाकोडी सागरोपमे उत्सर्पिणी थाय. अने दश कोडाकोडी सागरोपमे श्रवसर्पिणी थाय. एवं वीश कोडाकोडी सागरोपमे कालचक्र थाय. ए कालमान जरत ऐरवतनी अपेक्षाएं जाणवू. ए काले करी काय स्थिति कही. हवे क्षेत्रथकी कहे . असंख्याता लोक प्रमाण एटले जेटला चउदराजलोकना आकाश प्रदेश बे, तेटलीज संख्याए असंख्याता लोक कपवा. ते असंख्याता लोकनो एकेक प्रदेश समय समय काढतां असंख्याति उत्सप्पिणी अने अवसर्पिणी थाय. ॥ २६४ ॥ तान वर्णमि अणंता ॥ संखिजा वास सदस विगलेसु ॥ पंचिंदि तिरि नरेसु ॥ सत्तठ नवाउ उक्कोसा ॥२६५ ॥ अर्थ-ताज के तेहिज पूर्वोक्त जे उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी कही तेवी अनंति उत्सर्पिणी अने अनंति अवसपिणी वणं मि के वनस्पतिनी काय स्थिति काले करी जाणवी. अने क्षेत्रथकी अनंता लोकाकाश प्रदेश प्रमाण असंख्याता पुजल परावर्त्त होय, एटले एक श्रावलिकाने असंख्यातमे जागे जेटला समय होय, तेटली संख्या प्रमाणे पुजलपरावर्तनी संख्या जाणवी. ___ए कायस्थिति व्यवहारराशि जीवने संजवे, केमके व्यवहारराशि जीव मरण पामि निगोदमां जाय तो अनंति उत्सपिणी अवसर्पिणी रहीने पढ़ी वली व्यवहारराशिमा श्रावे, एटले अहींयां मरुदेवा साथे व्यनिचार नहीं, केमके मरुदेवा अनादि निगोदि बे, तेमने काय स्थितिनुं ए प्रमाण नहीं. वली बेइंजियादिक विकलेंजीने संख्याता वर्ष एटले बेंजी, तेजी श्रने चनरेंडीने प्रत्येके संख्याता वर्ष सहस्र कायस्थिति जाणवी. वली पंचेंद्रीय तिर्यंचने तथा मनुव्यने, काय स्थिति सात श्राव जव जाणवी. एटले संख्याते आयुष्ये सात जव करे, अने आपमे नवे युगलि होय. ए आवे नवें करी कालमान त्रण पट्योपम अने सात पूर्वकोटी उत्कृष्टी जाणवी. ए उत्कृष्टी कायस्थिति कही. ॥ २६५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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