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संग्रदणीसूत्र.
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दश सीजे, असुर कुमार यादे देने दश निकायनी देवी थकी श्राव्या पांच सीजे, तेमज समस्त व्यंतरजातिनी देवीथकी आव्या पांच सीजे, तद्देवि के० ते असुरादिक तथा व्यंतरनी देवी ते प्रत्येके जूदी जूदी पांच जाणवी ॥ २५३ ॥ छाने ज्योतषी पुरुषथकी श्रव्या दश सीजे, ज्योतषी स्त्रीथकी श्राव्या वीस सीजे, वैमानिक देव ant व्या एकसो ने आठ सीजे, वैमानिक स्त्रीथकी श्राव्या वीश सीजे, इह सर्वत्र एक समय जावो. सिद्धप्रानृतने विषे देवगति, मनुष्यगति, तिर्यंचगति, नरकगति प्रत्येके दश दश सीजे एम कह्युं बे, एतत्व केवली जाणे, अथवा बहुश्रुत जाणे. एटले गतिश्री सिद्धी कही.
॥ दवे वेद श्री सिद्ध कहे बे, तथा सिद्धगतिए उपपात विरहकाल कहे बे. ॥ तद पुढे एहिंतो ॥ पुरिसो दोऊ ऋ सयं ॥ ५४ ॥ सेस जंग || दस दस सिति एग समएणं ॥ विरदो मास गुरु लहु सम चवण मिद नचि ॥ २५५ ॥
अर्थ- पुरुषवेदी देव, मनुष्य तथा तिर्यंचथकी निकली कोइ पुरुष थाय कोइ स्त्री या को नपुंसक था, एमज स्त्रीवेदी पण देवी प्रमुखथकी निकली कोई स्त्री घाय कोइ पुरुष थाय को नपुंसक थाय. एमज नपुंसकवेदी नारकी प्रमुखथकी नीकली कोइ नपुंसक थाय, कोइ स्त्री थाय कोइ पुरुष याय. ए सर्व मली नव जांगा था,
मां जे पुरुषवेदथकी घ्यावी फरी पुरुष वेदी यइ सीजे तो उत्कृष्टा एक समयमांदे एकसो ने आठ सीजे ॥ २५४ ॥ श्रने शेष थाकता याव जांगामां प्रत्येके एक समयमां जो सीजे तो दश दश सीजे, ते केवी रीते सीजे ते कहे बे. तेमां (१) केवल पुरुषवेदी वैमानिक देवोथी श्रावी पुरुष थर सीजे तो एक समये एकसो ने आठ सीजे, (२) एम पुरुषवेद की स्त्री थइ सीजे तो दश सीजे, (३) पुरुषथकी नपुंसक थर सीजे तो दश सीजे, (४) एम केवल स्त्रीवेदथकी घ्यावी स्त्री घर सीजे तो पण दश सीजे, (५) स्त्रीथकी पुरुष थइ सीजे तो पण दश सीजे, (६) स्त्रीथकी नपुंसक य सीजे तो पण दश सीजे, ( 9 ) केवल नपुंसक वेदथकी यावी नपुंसक इसीजे तो पण दस सीजे, (८) नपुंसकथकी पुरुष थर सीजे तो पण दश सीजे, (v) नपुंसकथकी स्त्री यइ सीजे तोपण दश सीजे.
छाने वैमानिक देवी, ज्योतषि देवी, अने मनुष्यनी स्त्री ए त्रण ठेकाणेथी स्त्री वेदी यावीने प्रत्येके वीरा विश सीजे, त्यां ए विशेष बे. जे स्त्रीवेदयकी यावी मनुष्यपणे पुरुष थइ अथवा स्त्री य अथवा नपुंसक थर सीजे तेवारे सर्व मल्या वीस सीजे.
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