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________________ १४६ संग्रहणीसूत्र. धनुष्य उत्कृष्ट अने सात हाथना शरीरवाला मोदे जाय, एवं जे कयु बे, ते प्रायिक कडं . नहीतर श्रधिको उनो पण होय. जे माटे पांचसे धनुष्य पृथक्त्व अधिक त्यां पृथक्त्व शब्दे पचीस धनुष्य जाणवा, अने सिकप्रानतिमांदे पांचसे श्रादे सोमांहे श्रीमरुदेवा गण्या , अने सात हाथ ते पण अंगुल पृथक्त्व हीन जाणवा, ते हीन , माटे बे हाथ गणिएं, एम करतां कांश शंका नथी. वली कुर्व लोके एक समये उत्कृष्टा चार मोदे जाय, अधोलोके बावीस मोदे जाय, तिर्यक लोके एकसो ने थाउ मोदे जाय, वली एक समये समुरुमांथी बे मोदे जाय, शेष पाणी नदि तथा प्रहमांहेथी त्रण मोदे जाय. अहींयां कई लोक ते मेरुचूलिका तो नंदनवन जाणवू, अने अधोलोक ते अधो. ग्रामविषे जाणवं, तथा तिर्यक लोक तो लोक प्रसिक बे; त्यां लब्धी माफक समुजमांहे अथवा बीपे जर काउसग्ग करी मोद जाय, नदिमांहे गंगानदि उतरतां श्रनिका सुत श्राचार्यनी पेरे मोदे जाय. ॥२५१ ॥ ॥ हवे चारे गतिमाहेथी श्रावेला केटला केटला मोदे जाय ते कहे . ॥ नरय तिरिया गयादस ॥ नरदेव गईन वीसहसयं ॥ दस रयणा सकरवालुयान चन पंक न दगजे ॥॥ बच्चवणस्स दसतिरि॥तिरिबि दस मणुय वीस नारी ॥ असुराश्वंतरा दस ॥ पण तदेवीन पत्तेयं ॥ ५३॥ जो दस देवि वीसं ॥ विमाणियहसय वीसदेवी ॥ अर्थ-नरय के नरकगतिथकी निकलीने मनुष्यगतिमां श्राव्या जो एक समये सीजे तो दश सीजे. एम तिर्यंच गतिथकी श्राव्या पण दश सीजे. अने मनुष्यगतिथकी श्राव्या वीश सीजे. देवगतिथकी श्राव्या श्रहसयं के एकसो ने था सीजे.वली ए गतिमांहे विशेष कहे . रत्नप्रना, शर्करा अने वालुकाथकी श्राव्या प्रत्येके दस दस सीजे. पंकप्रनाथकी श्राव्या चार सीजे. अने धूमादिकथकी श्राव्या सीजे नहीं. वलीनू के पृथ्वीकायथकी आव्या चार सीजे. दग के अपकायथकी श्राव्या चार सीजे ॥२५॥ वनस्पतिकायथकी श्राव्या उसीजे, पंचेंजी तिर्यंचयकी श्राव्या दश सीजे, तेमां तिर्यंचनी स्त्रीमांडेथकी आव्या पण दश सीजे. अने मनुष्य नरथकी आव्या दश सीजे, मनुष्य नारीथकी श्राव्या वीस सीजे. असुरादिक दश निकायथकी आव्या दश सीजे, तेम समस्त व्यंतरगतिथकी श्राव्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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