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________________ १४५ संग्रहणीसूत्र. ढम संघयणे के प्रथम संघयणे वर्त्तता होय ते पंचसुवि के पांचमी गति जे मोक्ष ते प्रते पण जाय; तेमाटे मोक्षगतिनी संख्या कहे , ते मनुष्य कर्मक्षये वर्त्ततां एक समये सामान्यपणे जघन्यथी तो एक, बे, त्रण भने उत्कृष्टा जा के यावत् बहसयं के एकसो ने श्राप एटला एक समयनेविषे जंतितेसिकिं के मोक्ष प्रते जाय. श्Yए ॥हवे त्रण वेद श्राश्री सिझगति विशेष कहे . ॥ वीसिबि दस नपुंसग ॥ पुरिस सयं तु एगसमएणं ॥ सिद्यगिदिअन्न सलिंग॥चनदस अबाहिय सयं च ॥२५॥ अर्थ- एक समयनेविषे उत्कृष्टा स्त्रीवेदे वीश मोदे जाय, एक समये नपुंसकवेदी दस मोदे जाय, अने पुरुषवेदी एकसो ने श्राउ एक समयनेविषे मोदे जाय, गृहिलिंगे एक समये चार मोदे जाय, अन्यलिंग एटले तापसादिकने लिंगे एक समये दस मोदे जाय, अने सलिंग ते स्वलिंगें एटले साधुलिंगें अहाहियसयं च के० एकसो ने आठ एक समये मोदे जाय. ॥ २५० ॥ गुरुखहु मस्सिम दोचन ॥ असयं उदो तिरिय लोए॥ चन बावीसऽसयं ॥ उसमुहे तिन्नि सेसजले ॥ २५ ॥ अर्थ- गुरु के० उत्कृष्टी श्रवगाहनाए एटले पांचसे धनुष्य प्रमाण शरीरवाला उत्कृष्टा एक समयने विषे दो के बे मोके जाय. जघन्य अवगाहनाए एटले बे हाथप्रमाण शरीरवाला उत्कृष्टा एक समयनेविषेचन के चार मोदे जाय. अने मनिम के मध्यम अवगाहनाए उत्कृष्टा एक समयनेविषे असयं के० एकसो ने आठ मोक्षनेविषे जाय. थहींयां शिष्य पूजे जे के उत्कृष्ट पांचसे धनुष्य शरीर अने जघन्य बे हाथ शरीरवाला मोक्षयोग्य होय; तो नाजिकुलगरनी नार्या श्रीमरुदेवीस्वामिनी सवापांचसें धनुष्यना शरीरे मोदे केम गइ ? वली जघन्यथी सात हाथ शरीर मोद योग्य बे, तो कूर्मापुत्र बे हाथना शरीरवाला केम मोदे गया ? अहींयां गुरु उत्तर कहे ... ___ उत्कृष्टथी पांचसे धनुष्य, श्रने जघन्यथी सात हाथना शरीरवाला जे मोदे जाय. ए शरीरमान तीर्थंकर आश्री कह्युबे, परंतु सामान्य केवली श्राश्री कद्यु नश्री. जे माटे श्रीजिनजागणिक्षमाश्रमण कहे जे के, जरिथकी स्त्री कांश्क न्यूनशरीरवाली होए के वली वृद्ध माणस खुंधो होय श्रने होथी उपर चड्यां थकां शरीर पण संकोच थयेj होय तेमाटे पांचसे धनुष्य शरीर श्रीमरुदेविजीनुं जाणवू. थने सात हाथना शरीरवाला तीर्थकर मोदे जाय, पण सामान्य केवली कूर्मापुत्र प्रमुख जघन्यथी बे हाथना शरीरवाला पण मोदे जाय. अने सिझांतमाहे पांचसें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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