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संग्रहणीसूत्र. वली आठे जांगे पूर्वनवे पुरुषते था जवे पुरुष थर सीजे तो एक सो ने आठ सीजे, बीजी रीते आठे नांगे दश सीजे. __ अने वली पूर्वे कयु जे वीस स्त्री एक समये सीजे, त्यां ए विशेष जे कोइ पुरुषवेदथकी श्रावी, कोई स्त्रीवेदथकी श्रावी, को नपुंसकवेदथकी श्रावी स्त्री थइ सीजे तो मिश्रित मली वीश सीजे, पण केवल पुरुषथी श्रावी, केवल स्त्रीथी श्रावी, केवल मपुंसकथी श्रावी वीश सीजे नहीं. इति जावार्थ. . इहां सिझपाहुडानुं विशेष लखिए बैएं. नंदनवने एक समये चार सीजे, पांमुक वने एकसमये बेसीजे, एकेकी विजये वीश वीश सीजे, एकेकी श्रकर्मनूमिए संहरण थकी दश दश सीजे, पन्नर कर्मनूमिए प्रत्येके एकसो ने श्राप आठ सीजे, वली उत्सप्पिणी श्रवसर्पिणीने प्रत्येके त्रीजे चोथे आरे एक समये उत्कृष्टा एकसो ने श्राठ मोदे जाय. श्रवसर्पिणीने पांचमे आरे पांच जरत पांच ऐरवतना वीश सीजे; वली उत्सप्पिणी अवसर्पिणीने शेष थाकते आरे संहरणथकी दश दशसीजे; उत्सर्पिणीने पांचमे श्रारे युगलिया होय तेमाटे शहां सिकि नहोय, बीजुं विशेष सिपाहुडाथकी जाणजो. केमके श्रति विस्तारे लखतां संक्षेप रुचीवालाने व्यामोह उपजे तेमाटे एटर्बु लखी पूर्ण कडे. - हवे गाथाना पाबला बे पदे करी सिद्धगतिनो ऊपपात विरह काल कहे जे. विरहों उमास गुरु के उत्कृष्टो मोद जावानो ब महीनानो ऊपपात विरह जाणवो. अने लहुसम के जघन्यथी तो एक समय जाणवो. तथा चवणमिहनवि के० ए मोद थकी पाडो चवन नथी, जेमाटे मोदना जीव सादिअनंत , एटले श्रादिले पण अंत नथी. जे कर्मे संसारमांहे पाबा श्रावी ऊपजे ते कर्म सिझमाहे नथी. जेम बख्या बीजे अंकूरो न थाय तेम कर्मरूप बीज बल्या थकी संसाररूप अंकूरो फरी प्रगटे नहीं.
अड सग पंच चल तिनि उन्नि इकोय सिऊमाणेसु ॥ बत्तीसाश्सुसमया ॥ निरंतरं अंतरं नवरिं ॥ २५६ ॥ बत्तीसा अडयाला ॥ सठी बावत्तरी य बोधवा ॥ चुलसीई
बमव॥रदिय महत्तर सयंच ॥॥ अर्थ-श्राप, सात, ब, पांच, चार, त्रण, बे ने एक समये सीजता बत्रीस आदे देश निरंतर सीजे, अने ऊवरि के उपरांत अंतर पडे ए अक्षरार्थ कह्यो. हवे जावार्थ कहे . एक आदे देश बत्रीस सीम निरंतर सीजे तो उत्कृष्टा आठ समय सुधी सीजे ते कहे . एक समये एक, बे, त्रण यावत् बत्रीस सीजे, बीजे समये पण एक, बे,
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