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________________ १४२ संग्रदणीसूत्र. जो उत्कृष्टो बार मुहूर्त्तने यांतरे उपजे. अने मरण पण एक मुवा पढी उत्कृष्ट श्रांतरो पडे तो बार मुहूर्त्त पी अवश्य बीजो कोइ मरण पामे. तेम जन्म पण याय, अने यति एटले इतर जे समूर्धिम मनुष्य बे, तेने उत्कृष्टो जन्म मरण संबंधी विरह पडे तो चोवीस मुहूर्त्त सुधी पडे. अने जघन्य थकी गर्जज मनुष्यने तथा समूर्छिम मनुष्यने जन्ममरणनो विरकाल एक समय जावो. दवे एक समय गर्भज तथा समूर्व्विम मनुष्य उपजे तो केटला उपजे ? ते कहे बे. सुरसमाणा के० देवतानी पेरे ते इंगति संखमसंखा इगसमए हुंतिय चवंति के० एक समये एक, बे, त्रण, संख्याता, असंख्याता उपजे तेम मरण पण पामे. त्यां गज मनुष्य उत्कृष्टे काले अंगणत्रीश श्रांके संख्याता सुधी गणिएं. अने गर्जन समूमि बेज ला गणिएं, तेवारे असंख्यातासुधी गएिं. ॥ २४२ ॥ ॥ हवे कियो जीव मरीने मनुष्यगतिमां आवे ? ते गतिद्वार कहे बे. ॥ सत्तमि मदि नेरइए ॥ तेऊ वाऊ असंख नर तिरिए || मुत्तूण सेस जीवा ॥ उप्पती नरभवंमि ॥ २४३ ॥ अर्थ- सातमी नरकपृथ्वीना नारकी, तेऊकाय, वाऊकाय, असंख्याता आयुष्यवाला युगलिया, एटले मनुष्य तथा तिर्यंच युग लिया. एटला मूत्तणं के० मूकीने सेस जीवा के० शेष बीजा सर्व जीवो ते उप्पजंतिनरजवंमि के० मनुष्यमांदे उपजे ॥ २४३ ॥ ॥ वली अहींयां विशेष कहे . ॥ सुर नेरइएहिं चिय ॥ दवंति दरि अरिद चक्कि बल देवा ॥ चविदसुर चक्किबला ॥ वेमाणिय हुंति दरि अरिदा ॥ २४४ ॥ - वासुदेव, अरिहंत, चक्रवर्ति ने बलदेव-ए चारे सुरनेरइएहिंचिय के० दे वता ने नारकीनी गतिमांथी श्राव्या होय; पण मनुष्य तथा तिर्यंचनी गतिथी श्रावेला न होय. वली चार निकायना देवगतिना श्राव्या पण चक्कि के० चक्रवर्ति अने बला के० बलदेव होय. ने वेमा पियहुंतिहरि रिहा के० अरिहंत तथा वासुदेव ए बने केवल वैमानिक देवगतिनाज व्या होय. बीजी ऋण निकायना श्राव्या न होय. हरिणो मणुस्स रयणा ॥ हुंति नागुत्तरेहिं देवेदिं ॥ जद संभव मुववार्ज ॥ दयगय एगिंदि रयणाणं ॥ २४५ ॥ अर्थ- वैमानिकमांदे विशेष देखाडे बे. हरिणो के० वासुदेव, तथा चक्रवर्त्तिना मणुस्सरयणाई के० मनुष्य रत्न पांच, ते हुंतिनाणुतरेहिं देवेहिं के० पंचानुत्तरना देव चवीने न होय. अहींयां ए जावार्थ बे के वासुदेव तो नारकी तथा वैमानिकथकी श्राव्या Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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