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________________ १३८ संग्रदणीसूत्र. सातमा नरके सदा कमलेश्या बे, घने तेजोलेश्यादिक व्याकार मात्र प्रतिबिंब मात्रे करी केवारेक होय, अने ते उपनी थकी पण घणो काल रहे नहीं. अने जे नरके जे लेश्या बे ते अनेरी लेश्याने संयोगे पोतानुं स्वरूप बांडे, एंम पण न थाय. 66 माटे सातमा नरके एकली कम लेश्याज जाणवी. ए कारणे संगमा देवने श्राकारमात्र कृल लेश्या कदेवी, पण व्यवस्थित तो तेजोलेश्या जाणवी; अने जगवति - मां देवताने वर्ण जूदो को बे, अने लेश्यानो अधिकार पण जूदो को बे. वली असुराकाला " इत्यादि बाह्य वर्ण कह्यो, अने जवणवणपढम चउलेस इत्यादिक बेश्या स्वरूप कयुं, तो जाणीये बैएं जे वर्ण जूदो, अने लेश्या जूदी बे. घणुं शुं ? तथा जे tai Saraश्या यवस्थित कही. जे देवता नारकीने जे लेश्या संजवे ते पोतपोतानी नवस्थिति प्रमाण वस्थित कालप्रमाण जाणवी. त्यां पाउला जवनो एक अंतरमुदुर्त्त, अने एक आगला जवनो अंतरमुहूर्त, ए बेज अंतरमुहूर्त्त अधिक नवस्थिति सुधी लेश्या होय. हवे ए श्यानुं स्वरूप कहे बे. मार्ग थकी परिचष्ट थया एवा व पुरुष वनमां जमतां भूख तृषाये पीड्या थका जंबुवृने देवे श्राव्या. ते मांदोमांदे फल खावानी diar aai चित्तविषे चिंतन करवा लाग्या जे, ए वृनां फल जक्षण करीने क्षुधा तृषाने उपशमाविएं; एम विचारी एक पुरुष फलने अर्थे ते वृने मूल थकी बेदवा लाग्यो; एटले बीजो पुरुष बोल्यो जे थमथी बेदो, त्रीजो बोल्यो जे मालां दो, चोथो पुरुष न्हानी डालीउने बेदो एम बोल्यो, पांचमो पुरुष पाकां फलने तोमो एवं बोल्यो, अने बडो पुरुष बोल्यो जे पृथ्वी उपर खरी पडेलां फल मध्येथी वीणी खार्ड. जेम एव पुरुषना परिणाम जूदा जूदा तेम कृतादिकथी मांडी यावत् शुक् लेश्याना परिणाम पण जूदा जूदा जाणवा. हवे लेश्यानो वर्ण कहे बे. स्निग्ध मेघनी घटा सरखो, जैसना सिंगडां, अरिष्टरत्न, नेत्रनी कीकी ने काला सुरमा सरखो कमलेश्यानो वर्ण महाजयंकर जावो. अशोक वृक्षना अंकुर सरखो, नीलचास पक्षी सरखो, अने वैकुर्य रत्ननी कांति सरखो नील लेश्यानो वर्ण जावो. छालशीना फूल सरखो, जारसी अथवा कोकीलानी पांख सरखो, अने पारेवाना कंठ सरखो कापोतलेश्यानो वर्ण जावो. हींगलोकनो रंग, उगता सूर्यनी कांति, अने दीपक तथा पोपटनी चांच सरखो ते जोलेश्यानो वर्ण जावो. हरियालना मध्यरंग सरखो, हलदरना रंग सरखो, अने सेणानाफूल सरखो पद्मलेश्यानो वर्ण जावो. शंख, सुचकुंदनां फूल, दूध, पूर्ण चंद्रमा, मोतीना हार रूपा सरखो शुक्क लेश्यानो वर्ण जावो. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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