SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संग्रहणीसूत्र. १३. ए हवे श्याना रस कहे बे. करुवा तुंबडानो रस, अने नींब इंद्रवारुणीनो रस, ए की अनंतगुण कडवो रस कृम लेश्यानो जावो. सुंठ, मरी, पीपर, अने गजपीपर, एनो जेवो तीखोरस थाय बे, ते करतां अनंतगुणो तीखो रस नील वेश्यानो जावो. काचुं श्रां ने काचं कोठफल ते थकी अनंतगुणो तुरो रस कापोत लेश्यानो जाणवो. पाका थांबांना फलनो रस, पाका को फलनो अथवा पाका बीजोरानो जेवो रस, ते करतां अनंतगुणो मीठो रस तेजोलेश्यानो जाणवो. प्रधान वारुणीनो रस, छाने विविध प्रकारना अरग, मधु एना रस थकी अनंतगुणो सारो र पद्म लेश्यानो जावो. खजुर, प्राख, दूध, खांड, साकर, एना रसथकी पण अनंतगुणो गल्यो रस शुक्ल लेश्यानो जावो. दवे लेश्यानो फरस कहे बे. कृम, नील, ने कापोत ए त्रण लेश्यानो फरस प्रशस्त एटले मध्यम जाणवो. गायनी जीजनो फरस तथा करवतनो फरस, ते करत पण अनंतणो कर्कस फरस ते प्रथमनी ऋण लेश्यानो जावो. अने तेजो, पद्म तथा शुक्ल, ए त्रण लेश्यानो प्रशस्त एटले रुमो फरस जाणवो. परवन ने माखनो जेवो कोमल फरस होय, ते करतां पण अनंतगुणो सुकुमाल फरस जाणवो. एटले नारकीनुं श्रागतिद्वार कयुं. दवे नारकी नरक थकी नीकलीने क्यां यावे कहे . श्री पन्ना सूत्रमां कह्युं बे के, सातमा नरक थकी श्राव्यो जीव मत्स याय. ए प्रायिक वचन बे, तेमाटे गर्नज पर्याप्तो तिर्यच होय. एम जणाय बे. केमके, श्रीपार्श्व नाथ चरित्रे कमनो जीव सातमा नरक थकी श्राव्यो सिंह थयो देखाय बे. एटले जे उत्कृष्टायु जोगवी सातमा नरक थकी नीकले ते मत्स याय; छाने मध्यम तथा जघ - न्यायु जोगवी सातमा नरक थकी नीकले, ते गर्जज पर्याप्तो तिर्यंच थाय. ए संअर्थ क्युं बे, विचारी जोजो. 1 निरज वट्टा गनय ॥ पजत्त संखान ल िएएसिं ॥ चक्कि दरि जुअल रिहा | जिए जइ दिसि सम्म पुवि कम्मा ॥२३॥ - रिट्टा के नरकथकी नीकल्या जीव अनंतर आगले जवे गाय के० गहोय; पण समूर्छिम न होय. एतावता समूर्छिम तिर्यंच, तथा समूर्छिम मनुष्य तथा देवता ने नारकी मांहे पण न जाय; मात्र गर्भजपणे पजत्त के० पर्याप्ता होय; पण अपर्याप्ता न होय. वली संखान के संख्याता वर्षने आयुष्ये उपजे, पण युगलियामां न उपजे. वली लएिएस के० ए नारकीने जे जे नरक थकी नीकट्या कां जे जे लब्धि एटले लाज प्राप्ति होय, ते हवे अनुक्रमे कहे बे. पहेली रत्नप्रजा पृथ्वी की जो श्राव्या होय तो, चक्रवर्त्ति होय. पण शेष पृथ्वीना आव्या चक्रवर्त्ति Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy