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संग्रहणीसूत्र.
अनुक्रमे गुलनो श्रसंख्यातमो जाग, तथा संख्यातमो नाग होय. अहींयां जवधारणीय शरीर पहेलुं उत्पत्ति वेलाए शरीर पर्याप्ति करतां अंगुलने असंख्यातमे जागे होय, अने उत्तरवै क्रिय शरीर प्रारंभ वेलाए प्रथम अंगुलने संख्यातमे जागे होय. ॥ २३० ॥ एटले नारकीनुं अवगाहनाद्वार कयुं.
॥ हवे उत्पातविरह तथा चवनविरहनुं द्वार कहे . በ सत्तसु चवीसमुह ॥ सग पनर दिोग डु चन बम्मासा ॥ उववाय चव विरहो ॥ उदे बारस मुहुत्त गुरू ॥ २३१ ॥ लहुर्ज दावि समर्ज ॥ संखापुण सुरसमा मुणेयवा ॥ संखा - उपजत्त पदि ॥ तिरिनरा जंति निरएस ॥ २३२ ॥ अर्थ- सत्तसु के साते नरके नारकी प्राये निरंतर उपजे बे ने चवे बे. परंतु क्यारेक जो विरह पड़े तो जघन्यथकी तो लहु के० साते नरके एक समय विरह पडे. अने प्रत्येके जूदो जूदो पण एक समयज विरह पडे. वली गुरु के० उत्कृष्ट साते नरकने विषे नेलो विरहकाल पडे तो जंगे के० सामान्यपणे साते नरकमांदे कोइ उपजे नहीं ने कोई चवे पण नहीं, तो उत्कृष्टो बार मुहूर्त्त विरह होय. तेवार पछी सात नरकमांदेली कोइक नरके अवश्य कोइक उपजे, अथवा चवे.
ea जूदो जूदो नरक नरकने विषे उत्कृष्टो उपपात छाने चवनविरहकाल गाथाना अर्थी कहे बे. रत्नप्राएं चोवीश मुहूर्त्त, शर्कराएं सग के० सात दिवस, वालुकाए पन्नर दिवस, पंकाप्रजाएं एक मास, धूमप्रजाएं बे मास, तमप्रजाएं चार मास अने तमतमप्रजाएं व मास, ए उववाय चवणविरहो के० उपपात चवननो विरहकाल को. इहां जेनो जेटलो उपपात ने चवनविरहकाल कह्यो, तेटला कालयी उपरांत वश्यए नरकोने विषे प्रत्येके कोइक जीव उपजेज. छाने हे बारसमुहूत्त तथा लहु हासिम ए पदोनो अर्थ प्रथम लखाई गयो बे.
दवे एक समये केटला नारकी चवे ? अने केटला नारकी उपजे ? ते पाडली गा - थाना बीजा पदे करी कहे बे. संखापुण सुरसमामुणेयवा के० वली नारकीनी उपजवानी ने चवननी संख्या ते सुरसमा एटले देवता सरखी, जेम देवता एक समये एक, बे, ऋण, संख्याता संख्याता उपजे ने चवे, तेम नारकी पण मुणेयवा एटले जाणवा. एटले नारकीनुं उपपात चवन विरहद्वार कयुं.
हवे कोण जीव नरके जाय ? ते कहेतो थको गति द्वार पाटली गाथाना पाटला बे पदे करी कहे बे. संखाउ पजत्तपििद के० संख्याता आयुष्यवाला पर्याप्ता पंचेंडि
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