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________________ संग्रदणीसूत्र. १३५ तिर्यंच, तथा पंचेंडि मनुष्य जो नरकायु बांधे तो नरके जाय, बीजा जीव नरकायु बांधे पण नही; अने नरके पण जाय नहीं ॥ २३१ ॥२३॥ मिनादिहि महारंन ॥ परिग्गदो तिवकोद निस्सीलो ॥ _नरयानयनिबंधश्॥पावमई रुद्दपरिणामो ॥ ३३ ॥ अर्थ-जे माटे मिथ्यात्वी, महारंजी, परिग्रही, तीव्रलोजी, निःशील, पापरुची, अने रौज परिणामि एवो जे जीव होय ते नरकायु बांधी नरके जाय. एटले सामान्यपणे नरकगति कही. ॥ ३३ ॥ ॥ हवे विशेषे जूदी जूदी नरकगति कहे . ॥ असन्नि सरिसिव परकी॥ ससीद उरगिं बिति जाहिं॥ कमसो नकोसेणं ॥ सत्तम पुढवी मणुय मना ॥ २३४ ॥ अर्थ-असंही मनुष्य अपर्याप्तो जे मरण पामे, अने अपर्याप्त नरकायु नही बांधेते. माटे असंझी संमूर्छिम पंचेंजि पर्याप्तो तिर्यंच जो नरकायु बांधे तो,पहेली नरके जाय. त्यां जघन्य दश हजार वर्ष, अने उत्कृष्ट पक्ष्योपमनो असंख्यातमो नाग एटले थायुष्ये उपजे. उपरांत आयुष्ये उपजे नहीं. अने सरिसिव के तुजपरिसर्प, गोह, नोलियादिक, गर्जज प्रमुख पहेला नरक आदे देश बीजा नरक सुधी उपजे. वली परकी के पक्षी जे मांसाहारी गृह, सींचाणा, समली अने नीलचास प्रमुख रौ अध्यवसायवाला पदी, ते त्रीजी नरकपृथ्वी सुधी जाय. अने सीह के सिंह प्रमुख एवा हिंसक जीव जे चीतरा, कुतरा, बीलाडी, प्रमुख ते चोथी नरकपृथ्वीसुधी जाय, वली उरगिं के उरपरिसर्प एटले काला, धोला, काबरा, प्रमुख सर्प ते पांचमा नरकसुधी जाय. अने वि के स्त्रीवेदे नरकायु बांधे एवा जे स्त्रीरत्न प्रमुख ते यावत् ब. हा नरकसुधी जाय. अने मनुष्य तथा मह जे जलचर जीव ए बेज गर्नजपर्याप्ता ते उत्कृष्टथी सातमा नरक सुधी जाय. कमसो जकोसेणं के० ए अनुक्रमे प्रर्वोक्त सर्व जीवोनी उत्कृष्टी गति कही. अने जघन्यथी रत्नप्रजाने पहेले प्रतरे जाय, एथकी उपरांत अने उत्कृष्टाथकी आगल जे विचाले जाय, ते सर्व मध्यमगति जाणवी. ॥ हवे केटलाएक तिर्यंचने प्राये गति कहे . ॥ वाला दाढी परकी॥ जलयर नरगा गयान अश्कूरा ॥जं. ति पुणो नरएसु ॥ बाहुल्लेणं ननण नियमो॥ ३५ ॥ अर्थ-वाला के व्याल ते सादिक, अने दाढी के० दाढवाला सिंह प्रमुख, पकी ते गृह प्रमुख, जलचर ते मत्स्यादिक, एटली जातिना जीव ते नरगागयाङ के। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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