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________________ संग्रहणीसूत्र. बे. उपमंगुलसट्ठा के साढी उपन्न अंगुल एटले बे हाथ ने साढाथात श्रांगुलनी वुढी के वृद्धि करतां करतां जा तेरसे के यावत् तेरमे प्रतरे पूर्वोक्त देहमान पुणं के पूर्ण थाय, ते कहे . रत्नप्रजाने पहेले प्रतरे त्रण हाथ, बीजे प्रतरे बे हाथ ने साढाबाठ अंगुल वधारीएं, तेवारे एक धनुष्य एक हाथ ने साढा आठ अंगुल उपर थाय, त्रीजे प्रतरे एक धनुष्य त्रण हाथ ने सत्तर अंगुल, चोथे प्रतरे बे धनुष्य बे हाथ ने दोढ अंगुल, पांचमे प्रतरे त्रण धनुष्य ने दश अंगुल, बठे प्रतरे त्रण धनुष्य बे हाथ ने साढा अढार अंगुल, सातमे प्रतरे चार धनुष्य एक हाथ नेत्रण अंगुल, थाम्मे प्रतरे चार धनुष्य त्रण हाथ ने सामा अगीबार अंगुल, नवमे प्रतरे पांच धनुष्य एक हाथ ने वीश अंगुल, दशमे प्रतरे ब धनुष्य ने साडाचार अंगुल, श्रगीश्रारमे प्रतरे ब धनुष्य बे हाथ ने तेर अंगुल, बारमे प्रतरे सात धनुष्य ने साढी एकवीश अंगुल, तेरमे प्रतरे सात धनुष्य त्रण हाथ ने अंगुल, उत्कृष्टं देहमान थाय बे. एटले रत्नप्रना नरके प्रतरे प्रतरे जूउंजूउं देहमान कयु. ॥ २६ ॥ ॥ हवे शर्करादिकने विषे उत्कृष्टुं देहमान प्रतर प्रतरने विषे कहे . ॥ जंदेद पमाण विरि ॥ माए पुढवी अंतिमे पयरे ॥ तंचिय हिहिम पुढवी ॥ पढमं पयरंमि बोधवं ॥२२ ॥ तंचेगूणग सग पयर ॥नश्यं बीया पयर वुहिनवे ॥ तिकर तिअंगुल करसत ॥ अंगूला सहि गुणवीसं ॥ २२ ॥ पण धणु अंगुल वीसं ॥ पनरस धणु दूणि दब सडाय ॥ बासहि धणुदसड़ा ॥ पण पुढवी पयर वुहि श्मा ॥२२॥ अर्थ-जंदेहपमाण उवरिमाए पुढवीए अंतिमे पयरे- एटले जे जे उपर उपरनी रत्नप्रजादिक पृथ्वीने अंतिमेपयरे के बेदखे प्रतरे उत्कृष्टुं शरीर प्रमाण बे. तंचियहिक मपुढवी के तेते हेग्ली हेवली शर्करादिक पृथ्वीनेविषे पढम पयरंमि बोधव्वं केपहेले प्रतरे देहमान जाणवू. ॥॥ फरी तंच के० ते शर्करादिक पृथ्वीने पहेले प्रतरे जे जे देहमान श्रावे, तेने एगूणग के एके ऊणे सगपयर के श्रापथापापणे प्रतरे नश्यं के विनाग आपीएं, पठी जे श्रांक श्रावे ते शर्करादिक पृथ्वीना बीयाए पयर के० बोजा प्रतर श्रादे देश प्रतरे प्रतरे वुढीनवे के वृद्धि होय. ते वृद्धि बीजी पृथ्वी श्रादे देबछी पृथ्वीसुधी पांच पृथ्वीना बीजे प्रतरे श्रादे दे अनुक्रमे जाणवी. त्यां शर्कराना प्रथम प्रतरे सात धनुष्य त्रण हाथ ने अंगुल देहमान बे. तेमां तिकर तिअंगुल के त्रण हाथ अनेत्रण अंगुलनो प्रक्षेप करीएं. त्रीजा नरके प्रथम प्रतरे पन्नर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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