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संग्रहणीसूत्र.
पढम महीवल सुं ॥ खिविक एयं कमेण बीयाए ॥ इति चनपंच चगुणं ॥ तझ्याइ सुतंपि विवकमसो ॥ २१३ ॥
अर्थ - रत्नप्रजा पृथ्वीनो उपरनो समश्रेणि जाग, त्रण वलयनो बेमो, तेनो विकंज एटले जाप ते यथासंख्याए कहे बे. घनोदधि व योजन जाडो, घनवात साढाचार योजन जाडो, तनुवात दोढ योजन जाडो, ए त्रण मध्या थका पहेली नरपृथ्वी की चारे दिशाए बार योजन लोक बे. तेमांहे त्रण प्रक्षेप घालीए, ते यथासंख्याए कहे बे. रत्नप्रजानां त्रण वलयमां एक गाउ अने एक गाउनो त्रीजो जाग घनोदधि वल मांदे नाखीएं, बीजो एक गाउ घनवातवलयमांहे नाखीएं, त्री जो गाउनो त्रीजो जाग तनुत्रात वलयमांहे नाखीएं तेवारे बीजी शर्करप्रजानो वलय, विष्कंन होय. ए सर्व मली बार योजन बे गाउ ने उपर एक गाउना त्रण जाग करीएं तेमांना बे जाग एटलो बीजी नरकपृथ्वी थकी चारे दिशाए अलोक बे. हवे वालुकानरकपृथ्वी यादे देई पांचे नरकनां वलयमांहे- जे बीजी नरक पृथ्वीना वलयां नाखेलुं तेने वे गुणो, त्रणगुणो, चारगुणो, पंचगुणो, ने बगुणो करी अनुक्रमे यथा संख्याए घालीएं, तेवारे वालुकादिकना वलयनो विष्कंन होय; ते कहे बे.
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एक व योजन ने बे गाउ, अने एक गाउना त्रण जाग करीएं तेवा बे जाग उपर घनोद धिवलय, बीजुं पाच योजन घनत्रात वलय, त्रीजो एक योजन बे गाउ अने एक गाउनiत्रण जाग करीएं तेवा बे जाग तनुवात वलय, ए सर्व मली तेर योजन एक गाउ ने एक गाउना त्रण जाग करीएं तेवो एक नाग उपर एटलुं वालुका की चारे दिशाए अलोक बे.
inare सात योजननो घनोदधि वलय, पांच योजन ने एक गाउनुं घनवात वलय, एक योजन ने त्रण गाउनुं तनुवात वलय, ए सर्व मली पंकप्रनाथकी चौद योजन चारे दिशि लोक बे.
धूम जाए सात योजन ने एक गाउ, अनें उपर एक गाउना त्रण जाग करीएं वो एक जाग घनोदधि वलय बे. तथा पांच योजनने बे गाउ घनवात वलय बे, अने एक योजन ने त्रण गाउ तथा एक गाउना त्रण जाग करीएं तेवो एक जाग उपर एटलुं तनुवात वलय. ए सर्व मली चौद योजन ने बे गाउ तथा उपर एक गाउना त्रण जाग करीएं तेवा बे जाग एटलो धूमप्रनाथकी चारे दिशिए अलोक ठे.
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तमप्रजाए सात योजन ने बे गाउं, तथा एक गाउना त्रण जाग करीएं, तेवा बे जाग उपर एलुं घनोदधि वलय बे. तथा पांच योजन अने त्रण गाउनुं घनवात वलय बे.
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