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________________ संग्रहणीसूत्र. वली एक योजन श्रने त्रण गाउ, तथा एक गानना त्रण जागे करीएं तेवा बे नाग उपर एटबुं तनुवात वलय . ए सर्व मली पंदर योजन एक गान अने एक गाउना त्रण नाग करीएं तेवो एक नाग उपर एटलुं तमप्रना थकी चारे दिशाए अलोक जे. - तमतमप्रनाए अाठ योजननुं घनोदधि वलय, योजननुं घनवात वलय, बे योजनतनुवात वलय, ए सर्व मली सोल योजन तमतमप्रनाथी चारे दिशाए अलोक जे. - अहींयां शिष्य प्रश्न करे ले के प्रथम कडं जे “वीस सहस्सा घणुदहि पिंडो" ने हमणां “ बऽधपंचम जोयणं सहूं" तो ए ग्रंथमांदे आवी रीते विसंवाद केम ? तेनुं ग्रंथकार समाधान करे बे. मोच्चिय पुढविअहे ॥ घणुदहि पमुहाण पिंडपरिमाणं ॥ नणियंत कमेणं ॥ दायइ जा वलयपरिमाणं ॥१४॥ अर्थ- " वीससहस्ताई घणुदहि पिंमो" ए पाठनो अर्थ. पुढवि अहे के नरकपृथ्वीने हेठे मवेच्चिय के मध्यनागे घणु दहिपमुहाण के घनोदधि प्रमुखनो पिंडपरिमाणं के० पिपरिमाण ते नणियं के कह्यं त के तेवार पली कमेणं अनुक्रमे हाय के घटतां घटतां ते वलय " ऽध पंचम जोयणंसटुं” इत्यादिक जावलयपरिमाणं के० वलय परिमाण ते यावत् बेडे होय, ते कारणे वलय विरोध न होय. ॥ हवे पृथ्वी पृथ्वी प्रत्ये नरकावासानी संख्या कहे .॥ तीस पणवीस पनरस ॥ दसतिन्नि पणूण एग लरकाई॥ पंचय नरया कमसो॥चुलसी लरका सत्तसुवि॥१५॥ अर्थ- नरकावासा ते नारकीनां स्थानक जाणवां. ते पहेली नरकपृथ्वीएं त्रीश लाख नरकावासा . बीजीएं पचीस लाख, त्रीजीएं पन्नर लाख, चोथीएं दश लाख, पांचमीएं त्रण लाख, अने बहीएं पांचे ऊणा एकलाख, सातमीएं पांच अनुत्तर नरकमांहे सर्व अधोजागे नरकावासा ते पांच क्रमे नेला कस्या थका साते नरकना न. रकावासा चोराशी लाख होय. ॥ २१५ ॥ ॥ हवे साते नरकना प्रतर एट जेम घरनी एक नूमि, वे नूमि, त्रण नूमि प्रमुख होय तेनीपरे जे होय ते प्रतर कहेवाय ले. तेनी संख्या कहे .॥ तेरिकारस नव सग ॥ पण तिन्निग पयर सविगुणवन्ना ॥ सीमंताई अप्पश् ॥ गणंता इंदयामद्ये ॥ १६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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